________________
मल्लराष्ट्र : २९ :
संग्रह का उल्लेख है । कुश्ती का आरम्भ दो मल्लों की परस्पर ललकार से होता है— मल्लोमल्लमाहषते । 'पाइअ सद्दमहण्णवो" में मल्ल शब्द का अभिप्राय 'बाहुयोद्धा', कुश्ती लड़ने वाला पहलवान, भीत का अवस्तम्भनस्तम्भ, छप्पर का आधारभूत काष्ठ एवं एक राजकुमार मिलता है । विश्व- कोष के अनुसार मत्स्य अर्थात् लक्ष्य भेद में प्रवीण और बलवान होने के कारण चन्द्रकेतु को मल्ल की संज्ञा दी गयी है । डॉ० राजबली पाण्डेय ने भी इसकी पुष्टि की है। बृहत् हिन्दी कोश में मल्ल शब्द का अर्थ कुश्ती लड़ने वाला पहलवान, एक प्राचीन व्रात्य, क्षत्रियजाति, प्राचीन जनपद, कपोल, पात्र आदि है । आदर्श हिन्दी-संस्कृतकोश" के अनुसार मल्ल का अर्थ प्राचीन जातिविशेष, महाबल, मांसल स्थूल-महाकाय होता है ।
मल्ल शब्द की व्युत्पत्ति एवं अर्थ पर विचार करने से प्रतीत होता है कि बलिष्ठ, पहलवान, व्यायामशील, कुश्ती लड़ने की निपुणता के कारण मल्लों ने अपनी पहचान बना लो थी, इसीलिए जिस क्षेत्र में वे निवास करते थे उसे मल्लक्षेत्र, मल्लभूमि एवं मल्लराष्ट्र आदि नामों से सम्बोधित किया जाता था । इस मल्लभूमि के अधिष्ठाता लक्ष्मण के कनिष्ठ पुत्र राजकुमार चन्द्रकेतु माने जाते हैं । इनका एक नाम मल्ल भी बताया जाता है
इस प्रकार रामायणकाल में मल्लराष्ट्र की स्थापना हो चुकी थी । महाभारत में भी इसका उल्लेख है । बुद्धकालीन १६ महाजनपदों में यह सम्मिलित था । हिमालय की तराई में स्थित मल्ल राष्ट्र दो भागों में विभक्त था । एक का केन्द्र कुशीनगर और दूसरे का पावा था । कालक्रम की दृष्टि से मल्लराष्ट्र का अध्ययन दो भागों में किया जा सकता है(i) प्राग्बुद्ध युग (ii) बुद्धयुग
१. पाइअसद्दमहण्णवो, सं० बनारसीदास, दिल्ली ७,
२. विश्वकोश (हिन्दी), भाग १, सं० वसु, एन० एन०, कलकत्ता, १९२८ ।
३. डा० पाण्डेय, राजबली, गोरखपुर जनपद और उसकी क्षत्रिय जातियों, का इतिहास, ५२ पृ० गोरखपुर, १९४६ ।
४. बृहत् हिन्दी कोश, पृ० १०५३, ज्ञान मण्डल लिमिटेड, बनारस, द्वितीय संस्करण, १९५६ ।
आदर्श हिन्दी-संस्कृत कोश, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, १९७९ ।
५.
पं० हरगोविन्ददास, पृ० ६७५, मोतीलाल द्वि ० सं० १९६३ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org