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________________ २६ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श बौद्ध भिक्षु एकत्रित हुए थे, जिसमें पावा के भी भिक्षु उपस्थित थे जैसा कि सिंहली ग्रंथ 'महावंस" से ज्ञात है १७. १८. १९. -: थेरी उग्गम्य नभसा, गन्त्वा कोसम्बियं ततो । पावेप्यकावन्तिकानं, भिक्खूनं सन्तिकं लहुं । पेसेसि दूते तु सयं गन्त्वा होगङ्गहिह पव्वतं । आह सम्भूत तथेरस्स, न सव्वं साणवासिनो | पावेय्यका सट्ठि थेरा, आसी तावन्तिका पिच । महाखीणासता सब्वे, अहोगङ्ग हिह ओतरु || उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि बौद्ध साहित्य में पावा-विषयक विव-रण बहुलता से प्राप्त होता है और बुद्धकाल में पावा का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । पावा के विषय में संस्कृत बौद्ध साहित्य से भी विस्तृत जानकारी मिलती है, इसके सम्बन्ध में डा० अगने लाल ने विस्तार से वर्णन किया है । जैन एवं बौद्ध साहित्य में वर्णित कुछ तथ्यों में अन्तर दिखाई पड़ता है । उदाहरणार्थ बौद्ध साहित्य में वर्णित पावा के मल्ल एवं कुशीनारा के मल्ल इस प्रकार की दो शाखाओं का जैन साहित्य में कहीं उल्लेख नहीं प्राप्त होता है । इसके विपरीत कल्पसूत्र इत्यादि जैन ग्रन्थों में नवमल्लई, नवमल्लकि या नवमल्ल राजाओं का उल्लेख है । साथ ही बौद्ध ग्रंथों में केवल एक ही पावा का उल्लेख है चाहे वह प्रसिद्ध व्यापार मार्ग पर स्थित हो अथवा महावीर के निर्वाण से सम्बन्धित हो या बुद्ध तथा उनके शिष्यों या मल्लों के संस्थागार से । बौद्ध ग्रन्थों में मल्लों की पावा या पावा के मल्लों का बहुधा उल्लेख आता है । अधिकांश जैनग्रन्थों में निर्वाण भूमि का नाम पावा मात्र दिया गया है। कुछ ग्रन्थकारों ने पावा मज्झिमा या अपापा नाम भी दिया है। कुछ मज्झिमा को पावा से भिन्न बताते हैं । कुछ जैनग्रन्थों में पुराणों के तोर्थ-माहात्म्य की वर्णन शैली में सभी घटनाओं का उल्लेख किया गया है । जैन ग्रन्थों में एक ही ग्रंथ में एक ही वृत्तान्त दो स्थलों पर अलग-अलग रूप में वर्णित है । कल्पसूत्र में १. महावंस - व्या०, वासुदेव श्रीधर, पृ० १२४-१२५, नवनालन्दा महाविहार, नालन्दा, पटना, १९७१ । २. डा० अग्नेलाल, संस्कृत बौद्ध साहित्य में भारतीय जीवन, पृ० ३८, कैलाश प्रकाशन, लखनऊ, १९६८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only , www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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