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बौद्ध साहित्य में पावा समग्र भारतीय साहित्य में तत्कालीन भौगोलिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक परम्पराओं एवं गतिविधियों का जैसा व्यवस्थित विवरण बौद्ध साहित्य में उपलब्ध है, वैसा अन्यत्र नहीं। बौद्ध साहित्य की विशेषता यह है कि इसमें गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों के साथ-साथ समकालीन धर्म गुरुओं, राज्याध्यक्षों, आर्थिक एवं सामाजिक स्थितियों का चित्रण है । इस चर्चा में हम पालित्रिपिटकों, अट्ठकथाओं और सिंहली बौद्ध साहित्य में प्राप्त महावीर एवं पावा विषयक उल्लेखों पर विचार करेंगे।
सर्वप्रथम बौद्ध साहित्य के परिप्रेक्ष्य में मध्यदेश की, जिसमें पावा स्थित है, भौगोलिक स्थिति पर विचार किया जा रहा है। पालित्रिपिटक' में मध्यदेश को जम्बू का सर्वश्रेष्ठ प्रदेश बताया गया है । बुद्ध ने जम्बू द्वीप में जन्म लेने का संकल्प करने के पश्चात् मध्यदेश में ही जन्म लेना उचित समझा । जातक अट्ठकथाओं में इस प्रकार उल्लिखित है कि किस प्रदेश में बुद्ध जन्म लेते हैं इस पर विचार करते हुए उन्होंने मध्यदेश को देखा। ___ बौद्ध साहित्य में मध्यदेश की सीमाओं का विवरण सर्वप्रथम विनयपिटक' से प्राप्त होता है । इसके पूर्व में कजंगल नामक निगम, पूर्वदक्षिण में सलिलवती नदी, जो मेदिनीपुर जनपद में होकर बहती है, दक्षिण में सेतकणिक नामक निगम और पश्चिम में थण नामक ब्राह्मण ग्राम बताया गया है। उत्तरदिशा में उशीरध्वज नामक पर्वत है उसके बाद सोमान्त देश । जातक अट्ठकथा से भी इसकी पुष्टि होती है।
१. जातक अट्ठकथा-( हि० ) प्रथम भाग, पृ० ३८, सं० भि० धर्मरक्षित,
भारतीय ज्ञानपीठ, काशी १९५१ । २. विनयपिटक (हि.), पृ० २१३, सं०५० सांकृत्यायन राहुल, महाबोधि
सभा, सारनाथ, वाराणसी, १९३५ । जातक अट्ठकथा (हि० ), प्रथम भाग, सं० भि० धर्मरक्षित, ज्ञानपीठ काशी १९५१ ।
“मज्झिमदेसो नाम पुरथिमदिसाय कजंगलं नाम निगमो, तस्स अपरेन महासाला, ततो परं पच्चन्तिमा जनपदा ओरतो मज्झे, पुब्बदक्खि
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