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साहित्यिक साक्ष्य : १३ हुए अपापा नगरी पहुंचे (जगाम भगवान्नगरी आपाम्) । वहाँ उन्होंने अपनी क्षोणायु जानकर अन्तिम देशना हेतु समवसरण रचाया।
जिनप्रभसूरि ने विविधतीर्थकल्प (सन् १३२७ ई०) के अपापा बृहत्कल्प (२१) में पावा की उत्पत्ति आदि का विस्तार से वर्णन किया है जिसका पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है। इस कल्प के अन्त में वर्णन है कि जम्भिकग्राम में केवलज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् १२ योजन दूर मज्झिमापावा आकर महावीर ने गौतमादि गणधरों को दीक्षित किया । गणधरों ने यहीं द्वादशांग का प्ररूपण किया। यहीं महावीर के कानों से सिद्धार्थ वणिक् के उपक्रम से खरक वैद्य द्वारा काष्ठशलाका निकालने का वर्णन है। __विविधतीर्थकल्प के 'पावा' शीर्षक अन्य कल्प (१४) में महावीर के निर्वाण से जुड़ी एक जनश्रुति का भी उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार कालान्तर में कार्तिक अमावस्या की रात्रि में निर्वाणस्थली पर मिथ्यादृष्टि लोगों ने वीर-स्तूप स्थान पर नागमण्डप की स्थापना कर दी। आज भी चारों वर्गों के लोग उसका यात्रा-महोत्सव मनाते हैं। उस रात्रि में कुएँ से निकाले गये जल से पूर्ण मिट्टी का दीप देवताओं के प्रभाव से बिना तेल के जलता है। इसी प्रसङ्ग में उन्होंने लिखा है कि जहाँ आज भी (जिनप्रभसूरि के काल तक) नागकुमार, साँप के रूप में प्रभाव दिखाते हैं। यहाँ अमावस्या की रात्रि में तेलरहित, जल से भरे हए दीपक जलाते हैं । अनेक आश्चर्यों की भूमि परमजिनेश्वर के स्तूप से मनोहर स्वरूप वाली श्रेष्ठपुरी मध्यमापावा यात्रियों को समृद्ध करे। .
प्रतीत होता है कि विविधतीर्थकल्प में तीर्थों से सम्बन्धित जनश्रुतियों का भी उल्लेख होने के कारण तीर्थों के वर्णन में ऐतिहासिकता का अभाव है।
"विविधतीर्थकल्प' से तीर्थों की भौगोलिक स्थिति का भी ज्ञान होता है। प्रो० बाजपेयी ग्रन्थ के भौगोलिक तथ्यों के विवेचन के पश्चात् इस
१. विविधतीर्थकल्प-जिनप्रभसूरि, पृ० २१, सिंघी जैनज्ञानपीठ न० १०,
शान्तिनिकेतन, सन् १९३४ २. वही, पृ० ४३ ३. प्रो० बाजपेयी के० डी०-लोकेशन आव पावा, पृ० ५३, पुरातत्त्व, बुलेटिन
आव द (इण्डियन आर्केलाजिकल सोसाइटी, नई दिल्ली १९८७
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