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________________ ८ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श हो गयी है, अब हम पौद्गलिक द्रव्यों से प्रकाश करें। इसी ग्रन्थ के १४७ वे सूत्र में कहा गया है कि अवसर्पिणी के पाँचवें काल के व्यतीत होने में तीन वर्ष साढ़े आठ माह शेष रहने पर पावा-मज्झिमा के राजा हस्तिपाल की रज्जुकशाला में उन्होंने एकाकी अद्वितीय ( एगे अबीए) स्वाती नक्षत्र के प्रत्यूषकाल में सुख-विपाक दुःख-विपाक, एवं उत्तराध्ययन सूत्रों का उपदेश दिया था। बौद्धग्रन्थ दीघनिकाय के महापरिनिव्वाणसुत्त' में बताया गया है कि महापरिनिर्वाण के पूर्व बुद्ध का पावा में अन्तिम पड़ाव था। बुद्ध भोगनगर से चलकर पावा और पावा से कुशीनगर आ पहुँचे थे । इस यात्रा में वे पावा के सन्निकट कर्मकार पूत्र चन्द के आम्रवन में विश्राम किये थे और अपना अन्तिम आहार ग्रहण किये थे । यहीं उन्होंने अन्तिम उपदेश दिये थे। ग्रन्थ में यह भी उल्लेख है कि बद्ध के महापरिनिर्वाणोपरान्त उनके धातु अवशेषों का एक भाग पावा में रखा गया था। यह वस्तुतः पावा के मल्ल शासकों का अंश था। महापरिनिर्वाण बेला के अतिरिक्त एक बार पहले भी बद्ध के पावा जाने का उल्लेख है। उस समय वे वहाँ अजकलापक या अजकपालीय नामक चैत्य में ठहरे थे और अजकलापक यक्ष को विनीत किये थे । बौद्ध स्थविर खण्डसुमन की जन्मभूमि भी पावा नगरी ही थी। ___ कल्पसूत्र और महापरिनिव्वाणसुत्त में उपलब्ध तथ्यों के अवलोकन से कुछ प्रश्न हमारे सम्मुख आते हैं (१) क्या महावीर अपने अन्तिम चातुर्मास में और बुद्ध अपनी चर्या के अन्त में क्रमशः हस्तिपाल और मल्ल शासकों को जिस पावा में आये थे, वह पावा एक ही थी और कुशीनगर के निकट स्थित थी ? (२) क्या हस्तिपाल मल्लशासक था ? (३) कल्पसूत्र के १२२ वें सूत्र में पावापुरी और १२३ । सूत्र में मध्यमापावा एक ही प्रसङ्ग में उल्लिखित है ? पावापुरी में अन्तिम चातुर्मास का और पावा मज्झिमा में अन्तिम उपदेश, निर्वाण, दीप-प्रज्ज्वलन आदि घटनाओं का उल्लेख है । ऐसो स्थिति में क्या कल्पसूत्रकार के काल में पावा और पावामज्झिमा एक ही १. दीघनिकाय-महापरिनिव्वाणसुत्त-२१३ पृ० १३६ २. दीघनिकाय-महापरिनिव्वाणसुत्त २/३, पृ० १३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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