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१८८ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श 'विशाल कला कृति दृष्टिगोचर होती है । इसे माथा कुँवर की मूर्ति सम्बोधित किया जाता है। यह सम्पूर्ण कलाकृति १०-१/२ फीट ऊँची तथा ३-३/४ फीट चौड़ी है। इसमें बद्ध की प्रतिमा ५ फीट ४-१/३ इंच ऊँची है । उनके कन्धे की चौड़ाई ३ फीट ८-१/२ इंच तथा घुटने के बोच की दूरी ४ फीट ५ इंच है । इस मूर्ति के नीचे कुछ उत्कीर्ण है, जो अपठनीय है। डी० आर० पाटिल के अनुसार "इसका निर्माण कल्चरी स्थानीय शासक भीमट द्वितीय द्वारा लगभग १०वीं-११वीं शताब्दी में हुआ था।' वास्तव में यह मूर्ति कला का अनुपम उदाहरण है। यदि इसकी तुलना पडरौना से प्राप्त स्लेटी प्रस्तर की कलात्मक जैन प्रतिमा से किया जाय, तो कई नवीन तथ्य उजागर होंगे। विद्वानों के मतानुसार दोनों प्रतिमाओं का निर्माण काल लगभग दसवीं शताब्दी प्रतीत होती है। इस सम्बन्ध में भावी अनुसंधान के आधार पर ही कुछ निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है । निर्वाण मन्दिर के पश्चिम में विशाल बौद्ध विहार के भग्नावशेष तथा उत्तर-पूर्व एवं दक्षिण में अनेक स्तूप तथा खण्डहर दिखलायो देते हैं जिसका समय-समय पर निर्माण एवं जीर्णोद्धार होता रहा है।
कई शताब्दियों के पश्चात् सन् १८१४ में बुकनन' ही वे प्रथम विद्वान् हुए जिन्होंने कुशीनगर के विषय में चर्चा की थी। १८५४ में एच० एच० विल्सन ने कुशीनगर को बुद्ध को सम्भावित महापरिनिर्वाणस्थली ‘घोषित किया था। सन् १८६१-६२ में कनिंघम ने बुद्धकालीन साहित्य एवं ह्वेनसांग के यात्रा-विवरण के आधार पर कुशीनगर के उक्त स्थल के सर्वेक्षण हेतु आंशिक उत्खनन करवा कर इस स्थली को बुद्ध की महापरिनिर्वाणस्थली घोषित किया था। उनके उत्खनन के १५ वर्ष बाद १८७६-७७, १८७७-७८ में कार्लाइल' ने इसका उत्खनन करवाया जिससे
१. पाटिल, डी० आर०, कुशीनगर, पृ० ३० । २. बुकनन, हिस्ट्री, एण्टीक्विटोज, टोपोग्राफी, स्टेटिस्टिक्स आव इस्टर्न इण्डिया,
पृ० ३५७-३५८ । ३. जर्नल आव रायल एसियाटिक सोसायटी आव ग्रेट ब्रिटेन एण्ड आयरलैण्ड,
पृ० २४६ । ४. कनिंघम, ए०, आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इण्डिया रिपोर्ट, वा० I, पृ० ७६ । ५. कार्लाइल, ए० सी०, आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इडिया रिपोर्ट आव टूर्स
आव गोरखपुर, सारण गाजीपुर, पृ० ६२ ।
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