________________
पावा मार्ग अनुसंधान : १६९ राजबलि पाण्डेय' रुम्मिनदेई स्तम्भ अभिलेख का हिन्दी भाषान्तर इस प्रकार किया है-"बीस वर्षों से अभिषिक्त देवानांप्रिय प्रियदर्शी राजा द्वारा स्वयं आकर ( स्थान का ) गौरव किया गया, क्योंकि यहाँ शाक्यमुनि बुद्ध जन्म लिये थे। पत्थर की दृढ़ दीवार यहाँ बनाई गई और शिलास्तम्भ खड़ा किया गया, क्योंकि भगवान् यहाँ उत्पन्न हुये थे। लुम्बिनी ग्राम कर से मुक्त किया गया और अष्टभागी बना दिया गया ।"
शाण्टियर ने सिलाविगडभी का अर्थ विगड ( अश्व ) धारण करती हुई शिला प्रतिपादित किया है, जिससे यही प्रतीत होता है कि स्तम्भ के मुख्य भाग पर अश्व निर्मित था। उन्होंने शब्द को सिला + विगडभी दो खंडों में विभक्त कर यह अर्थ निकाला है। उन्होंने ह्वेनसांग के यात्राविवरण का उल्लेख किया है जिसमें स्पष्टतः लिखा हुआ है कि अशोक ने इस स्थान पर एक स्तम्भ की स्थापना की थी जिसके शीर्ष भाग पर अश्व निर्मित था। उनके मत का हलत्ज ने भी अनुमोदन किया है। इससे यही प्रतीत होता है कि उक्त अशोक स्तम्भ के शीर्ष भाग पर अश्व निर्मित रहा होगा।
राज्याभिषेक के बीस वर्ष पश्चात् सम्राट अशोक की तीर्थयात्रा महत्त्वपूर्ण रही है। बौद्धग्रन्थ "दिव्यावदान"3 से भी इसकी पुष्टि होती है। इसके अनुसार अशोक ने यह तीर्थयात्रा उपगुप्त नामक भिक्षु के पथ प्रदर्शन में की थी। अशोक सबसे पहले बुद्ध के जन्म स्थान लुम्बिनी वन गया था, वहाँ पहुँचकर उपगुप्त ने अपनी दाहिनी भुजा उठाकर कहाअस्मिन् महाराज प्रदेशे भगवान जातः ( दिव्यावदान, पृ० ३८९ )
आज लुम्बिनी अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटक केन्द्र है। यहाँ पर देश-विदेश के बौद्ध धर्मावलम्बी पर्यटकों का निरन्तर आवागमन हुआ करता है।
अशोक स्तम्भ से थोड़ी दूर पर एक प्राचीन मन्दिर है, जिसमें पाषाण खण्ड स्थापित है। इस पर बुद्ध के जन्म का दृश्य अंकित है। बुद्ध की माता महामाया प्रसव के बाद तीन अन्य प्राणियों के साथ एक शाल वृक्ष
१. डॉ० पाण्डेय, राजबली, अशोक अभिलेख, पृ० १८९ । २. शार्पण्टियर, जे०, ए० नोट आन द पदरिया आर रुम्मिनदेई इंस्क्रिप्शन,
इण्डियन एण्टीक्वेरी, पृ० १७-२०, वा० XLIII, बम्बई । ३. सं० वैद्य, पी० एल० दिव्यावदान, पृ० ३८९, मिथिला विद्यापीठ, दरभंगा,
१९५९।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org