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९८ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
बस्ती थी। मौलवी अब्दुल गफूर फारूकी' के अनुसार यह एक बहुत कदीम (पुराना) मुकाम है, कहा जाता है कि यह त्रेता जमाने में भी मौजद था । गौतम मुनि जो जमाना-ए रामचन्द्रजी के एक सिरताज ऋषि थे, उन्होंने यहाँ तपस्या की है और अक्सर यहाँ पर ऋषियों एवं साधुओं का मजमा रहता था।
पडरौना से लगभग ५४ मील (८५.५६ कि० मी०) उत्तर दिशा में गण्डक के उस पार त्रिवेणी पर्वत के निकट नेपाल को पहाड़ियों में, बिहारप्रदेश के पश्चिमी चम्पारन जनपद की सीमा पर बाल्मीकि आश्रम स्थित था । प्राचीन काल के अवशेषों, कलाकृतियों एवं मूर्तियों के आधार पर जनमानस में अटूट विश्वास है कि सुन्दर रमणीक जंगलों के मध्य तमसा तट पर बाल्मीकि आश्रम में निर्वासित सोता रहतो थी और वहीं राजकुमार लव और कुश का जन्म हुआ। बिहार प्रदेश शासन ने बाल्मीकि आश्रम की मान्यता की पुष्टि के प्रमाणस्वरूप इसके निकट ही पश्चिमो चम्पारण में बाल्मीकि नगर की स्थापना की है। __श्रुति, स्मृति एवं किंवदन्तियों के आधार पर जनमानस में मान्यता है कि रामायण काल में महाराजा दशरथ ने जनकपुर जाते-आते समय यहीं गंडक तट (राम-घाट) पर विश्राम किया था। इतिहास साक्षी है कि इस क्षेत्र से दशरथ, राम-कृष्ण, भीम, अर्जुन, कर्ण, महावीर, बुद्ध आदि का. सम्बन्ध रहा है।
बुद्धकाल के प्रादुर्भाव के पूर्व गण्डक तट पर स्थित पावा नगर का चातुर्दिक विकास हो रहा था।
कुशीनगर की ऐतिहासिकता पुरातात्त्विक स्रोतों के आधार पर प्रमाणित हो चुकी है। आज यह अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र बन चुका है। परन्तु अभी तक पावा का इतिहास पुरातत्त्व के गर्भ में छिपा हुआ है। पावा के विषय में अनेक भ्रान्तियाँ विद्यमान हैं। पावा की वास्तविक पहचान के लिये कुशीनगर एवं इसके समीपस्थ स्थानों का अध्ययन विवेचन आवश्यक है। बौद्ध साहित्य एवं जैन साहित्य में अध्ययन हेतु उपयोगी सूचनायें उपलब्ध हैं।
१.. फारूको, मोलवी अब्दुल गफूर, सजरे शादाब, पृ० ९१, नवलकिशोर प्रेस,
लखनऊ, १९०० ।
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