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पावा-पड़रौना अनुशीलन : ९७ २६. पाण्डेय, रामप्रसाद-गोरखपुर जिले का इतिहास, प्रयाग, १९४२, पृ०
१२, ३६, ८६ । २७. त्रिपाठी, रमाशंकर-हिस्ट्री आव ऐन्शियेन्ट ज्याग्रफी आव इण्डिया,
दिल्ली, १९४२, पृ० ८६ । २८. सलाम, सन्दीलवी-तारीख-ए-अदीबात गोरखपुर, गोरखपुर, पृ० ३ । २९. सिंह, सतीश चन्द्र-चेन्जेज इन दी कोर्स आव रीवर्स एण्ड इट्स एफे
क्ट्स आन दी अरबन सेटलमेन्टस इन दी मिडिल गंगेज प्लेन, वाराणसी १९७३ पृ० ७६-७७ (मान
चित्र पृ० १२९) ३०. सिंह, कृपाशंकर-लैण्ड यूज एण्ड न्यूट्रिशन इन पडरौना तहसील
(देवरिया), अप्रकाशित, पृ० १२७ । ३१. श्रीवास्तव, एम०-प्राचीन भारतीय संस्कृत-कला और दर्शन,
पी० एवं राजेन्द्र इलाहाबाद-२, पृ० ९७ ।
कुमार वर्मा ३२. सिंह, रामवृक्ष-गोरखपुर मण्डल के प्राचीन गणराज्य, गोरखपुर
पृ० ९, १३ । ३३. पाठक, विशुद्धानन्द-देवरिया का प्राचीन ऐतिहासिक भूगोल, युग
वातायन, देवरिया, पृ० ८। ३४. चौबे, हनुमान प्रसाद-भगवान महावीर के उपदेश, डा० आर० सी० गुप्ता
स्वतन्त्रचेतना ७-४९० पृ० ४, गोरखपुर । ३५. सरावगी, के०टी०एस०-अर्बन सेन्टर्स एण्ड अर्बनाइजेशन, पृ० १५५ ।
भौगोलिक विवेचन : पडरौना तथा इसके समीपवर्ती क्षेत्र का महत्त्व अति प्राचीन काल से है। गण्डक के सन्निकट स्थित तथा अरण्य के घिरे होने के कारण यह क्षेत्र अत्यन्त रमणीय था। यहाँ के जंगलों में ऋषि, मुनि, साध, महात्मा, तपस्यारत रहा करते थे। इनके चरण-रज से पवित्र हुई स्थली आज भी जनमानस का ध्यान आकर्षित करती है। रामप्रसाद पाण्डेय के अनुसार यह क्षेत्र (उत्तरी देवरिया जनपद) वैदिक काल में आर्यों की १. पाण्डेय, रामप्रसाद, गोरखपुर जनपद का इतिहास, पृ० ८, प्रयाग १९४२ ।
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