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पावा की अवस्थिति सम्बन्धी विभिन्न मत : ८९
अध्ययन किया परन्तु उन्होंने भी पावा के विषय में कोई जानकारी नहीं दी । बौद्ध धर्मावलम्बी तिब्बती यात्री धर्मस्वामी ( १२३४ ई० ) ने भारत के धार्मिक स्थलों की यात्रा की । उन्होंने भी पावापुरी का उल्लेख नहीं 'किया है । यदि इन विदेशी यात्रियों को यात्रा काल में नालन्दा जनपद में स्थित पावा का कोई अस्तित्व रहा होता अथवा इसको धार्मिक महत्ता रही होती तो नालन्दा एवं राजगृह का भ्रमण करते समय इन्होंने पावा का सर्वेक्षण एवं निरीक्षण अवश्य किया होता ।
श्री भंवरलाल नाहटा नालन्दा स्थित पावापुरी को हो महावोर को निर्वाण स्थली पावा मानते हैं । फाह्यान ओर ह्वेनसांग प्रदत्त विवरण - के आधार पर वे नालन्दा स्थित इस पावा की दूरी कुशीनगर से १२ मी बताते हैं । वे देवरिया जनपद स्थित कुशीनगर को बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली के रूप में नहीं मानते हैं । परन्तु उनकी यह मान्यता तथ्य से परे है । बौद्ध साहित्य में कुशीनगर का मल्लों की राजधानी के रूप में स्पष्ट उल्लेख है । अत: इसे मगध साम्राज्य के अन्तर्गत मानने का कोई औचित्य नहीं है । कनिंघम ने फाह्यान एवं ह्व ेनसांग के यात्राविवरण के आधार पर कुशीनगर के भग्नावशेषों का उत्खनन कराकर इसे महात्मा बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली घोषित कर दिया । कालान्तर में अन्य पुरातत्त्ववेत्ताओं ने समय- २ पर इस स्थली का उत्खनन करवाकर इस मान्यता की पुष्टि की। बुद्ध के परिनिर्वाण स्थली के रूप में आज यह सर्वमान्य है ।
पुरातात्त्विक दृष्टि से भंवरलाल नाहटा ने पावापुरी के जलमन्दिर की ईटों को २५०० वर्ष पुराना माना है । परन्तु डी० आर० पाटिल ने पावापुरी की जैनधर्म स्थलियों की प्राचीनता के विषय में सन्देह प्रकट किया है। इनका मन्तव्य है कि यहाँ प्राप्त कोई पुरातात्त्विक अवशेष १६ वीं शताब्दी से पूर्ण का नहीं है । यद्यपि जैन परम्परा इसे ६ वीं शताब्दी ई० पू० का मानती है ।
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उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि पावापुरी में ऐसी कोई पुरातात्त्विक कलाकृतियाँ, भग्नावशेष एवं अन्य सामग्रियाँ प्राप्त नहीं हो पाई हैं, जिनके आधार पर इसे महावीर का निर्वाण स्थली पावा के रूप में मान्यता दी जा सके ।
बौद्ध ग्रन्थों में भो, मगध की राजधानी राजगृह या उसके उपनगर. नालंदा के समीपस्थ पावा का कोई उल्लेख नहीं है, जबकि निकटवर्ती अनेक ग्रामों व नगरों का है । पश्चातवर्ती, बौद्ध लेखकों ने भी उक्त पावा के
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