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________________ ४६ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन बोला - मुनिकुमार, हमें शीघ्र ही अपने गुरु के निकट ले चलें । हमें उनके दर्शनों की तीव्र उत्कंठा हो रही है । इसके बाद सब लोग आचार्य सुदत्त के पास पहुँचे और उनके उपदेश से प्रभावित होकर धर्म में दीक्षित हो गये । धर्म के प्रभाव से सारा यौधेय सुख, शान्ति र समृद्धि से श्रोतप्रोत हो गया । / यशस्तिलक की इस सम्पूर्ण कथावस्तु को सोमदेव ने एक स्थान पर केवल एक पद्य में संजो कर रख दिया है. - "आसीच्चन्द्रमतिर्यशोधरनृपस्तस्यास्तनूजोऽभवत् तौ चण्ड्याः कृतपिष्टकुक्कुटबलीवेड प्रयोगान्मृतौ ॥ श्वा केकी पवनाशनश्च पृषतः ग्राहस्तिमिश्छागिका भर्तास्यास्तनयश्च गर्वरपतिर्जातौ पुनः कुक्कुटौ । ” - पृ० २५६, उत्त० चन्द्रमति नामकी रानी थी । उसका पुत्र यशोधर हुप्रा । उन दोनों ने चण्डमारी देवी के सामने घाटे के मुर्गे की बलि दी और विष के दिये जाने से उन दोनों की मृत्यु हो गयी । इसके बाद अगले जन्मों में क्रम से कुत्ता और मोर, साँप और सेही, मगर और महामत्स्य, बकरा-बकरी, फिर बकरा-बकरी और अन्त में मुर्गा-मुर्गी हुए । इस तरह यशस्तिलक की कथा को एक ओर एक पद्य में संग्रथित किया गया है, दूसरी ओर इसी कथा को पूरे यशस्तिलक में नियोजित किया गया है । कथावस्तु की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि काव्य के माध्यम से जन-मानस में नैतिक जागरण की प्रक्रिया प्राचीन काल से चली आयी है | काव्य से एक ओर पाठक का मनोरंजन होता रहता है, दूसरी ओर बिना किसी बोझ के अनजाने ही उसके मानस पटल पर नैतिक धरातल की पृष्ठभूमि भी तैयार होती रहती है। इसीलिए मम्मट ने इसे कान्तासम्मित उपदेश कहा । जिस प्रकार कान्ता (स्त्री) अपने पति का मन बहलाती हुई खुशी-खुशी उससे अपनी बात मनवा लेती है, उसी प्रकार काव्य पाठक का मनोरञ्जन करता हुआ उसे सदुपदेश भी दे देता है । काव्यशास्त्र की इस मौलिक प्ररेरणा ने ही साहित्यकार पर सामाजिक चरित्रविकास का उत्तरदायित्व ला दिया । फिर तो काव्य के माध्यम से धर्म श्रौर तत्त्वज्ञान की भी शिक्षा दी जाने लगी । महाकवि अश्वघोष के सौंदरानन्द महा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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