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________________ ( २० ) हेमकन्यकायें, तुहिनतरु के वलीक, कूर्चस्थान इत्यादि का विश्लेषण किया गया है । दीर्घिका और प्रमदवन के विषय में भी सोमदेव ने पर्याप्त जानकारी दी है । दीर्घिका राजभवन में एक ओर से दूसरी ओर दौड़ती हुई वह लंबी नहर थी, जिसे बीच-बीच में रोककर, पुष्करणी, गंधोदककूप, क्रीड़ावापि श्रादि मनोरंजन के साधन बना लिए जाते थे और अन्त में जाकर दीर्घिका प्रमदवन को सींचती थी । दीर्घिका तथा प्रमदवन दोनों के प्राचीन वास्तु-शिल्प की यह विशेषता बहुत समय तक जारी रही प्रौर भारत के बाहर भी इसके उल्लेख मिलते हैं । इस परिच्छेद में इस सबके विषय में विस्तृत जानकारी दी गयी है । परिच्छेद चार में यन्त्र-शिल्प विषयक सामग्री का विवेचन है । यन्त्रधारागृह के प्रसंग में सोमदेव ने अनेक प्रकार के यान्त्रिक उपादानों का उल्लेख किया है। कुछ सामग्री अन्य प्रसंगों में भी प्रायी है । 1 यन्त्र - यन्त्रधारागृह के निर्माण की परम्परा का क्रमशः विकास हुआ है । समरांगण सूत्रधार में पांच प्रकार के वारिगृहों के उल्लेख हैं । सोमदेव ने यन्त्रधारागृह का विस्तार से वर्णन किया है । वहाँ यन्त्रजलधर या मायामेघ की रचना की गयी थी । विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षियों के मुँह से निकलता हुआ जल दिखाया गया था यन्त्रपुत्तलिकायें, यन्त्रवृक्ष आदि की रचना की गयी थी । धारागृह का प्रमुख श्राकर्षण यन्त्रस्त्री थी, जिसके हाथ छूने पर नखाग्रों से, स्तन छूने पर चूचुकों से, कपोल छूने पर नेत्रों से, सिर छूने पर करर्णावतंसों से, कटि छूने पर करधनि की डोरियों से तथा त्रिवली छूने पर नाभि से चन्दन चर्चित जल की धारायें बहने लगती थीं I सोमदेव ने पंखा झलनेवाली तथा ताम्बूलबाहिनी यान्त्रिक पुत्तलिकाओं का भी उल्लेख किया है । अन्तःपुर के प्रसंग में यन्त्रपर्यंक का उल्लेख है । इस परिच्छेद में इस सम्पूर्ण सामग्री का विवेचन किया गया है । चतुर्थ अध्याय में यशस्तिलककालीन भूगोल पर प्रकाश डाला गया है । यशस्तिलक में सैंतालिस जनपद, चालीस नगर और ग्राम पांच बृहत्तर भारत के देश, पन्द्रह वन और पर्वत तथा बारह झील और नदियों के उल्लेख हैं। इसमें कुछ सामग्री ऐसी भी हैं जो सोमदेव के युग में अस्तित्व में नहीं थी । ऐसी सामग्री को सोमदेव ने परम्परा से प्राप्त किया था। इस सम्पूर्ण सामग्री का पाँच परिच्छेदों में विवेचन किया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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