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________________ ( १८ ) परिच्छेद दो में यशस्तिलक की चित्रकला विषयक सामग्री का विवेचन है । सोमदेव ने विभिन्न प्रकार के भित्तिचित्रों तथा धूलिचित्रों का उल्लेख किया है । प्रजापतिप्रोक्त चित्रकर्म का सन्दर्भ विशेष महत्त्व का है । उसका एक पद्य उद्धृत किया गया है । I । भित्तिचित्र बनाने की एक विशेष प्रक्रिया थी । भित्तिचित्र बनाने के लिए भीत का लेप कैसा होना चाहिए, उसे कैसे बनाना चाहिए, उस पर लिखाई करने के लिए जमीन कैसे तैयार करना चाहिए-इत्यादि का मानसोल्लास में विस्तृत वर्णन है । सोमदेव ने दो प्रकार के भित्तिचित्रों का उल्लेख किया है - व्यक्तिचित्र और प्रतीकचित्र । एक जिनालय में बाहुबलि, प्रद्युम्न, सुपा अशोक राजा और रोहिणी रानी तथा यक्ष मिथुन के चित्र बनाये गये थे । प्रतीक चित्रों में तीर्थंकर की माता के सोलह स्वप्नों के चित्र थे । श्वेताम्बर साहित्य में इनकी संख्या चौदह बतायी है । ऐरावत हाथी, वृषभ, सिंह, लक्ष्मी, लटकती हुई पुष्पमालायें, चन्द्र, सूर्य, मत्स्ययुगल, पूर्ण कुम्भ, पद्मसरोवर, सिंहासन, समुद्र, फरणयुक्त सर्प, प्रज्वलित अग्नि, रत्नों का ढेर और देवविमान ये सोलह स्वप्न तीर्थंकर की माता बालक के गर्भ में आने के पहले देखती है । प्राचीन पाण्डुलिपियों में भी इनका चित्रांकन मिलता है । 9 रंगावली या धूलिचित्रों का सोमदेव ने छह बार उल्लेख किया है । चित्रकला में रंगावली को क्षणिक चित्र कहते हैं । इसके धूलि चित्र और रसचित्र ये दो भेद हैं । आजकल इसे रंगोली या अल्पना कहा जाता है । प्रत्येक माँगलिक अवसर पर रंगोली बनाने का प्रचलन भारतवर्ष में अभी भी है । है कि जो कलाकार प्रभामण्डल युक्त तीर्थंकर सभा या समवसरण का चित्र चित्र बना सकता है । प्रजापतिप्रोक्त चित्रकर्म का एक विशेष प्रसंग में उल्लेख है । पद्य का तात्पर्य तथा नव भक्तियों सहित तीर्थंकर अर्थात् बना सकता है, वह सम्पूर्ण पृथ्वी का भी चित्रकला के अन्य उल्लेखों में ध्वजानों पर बने चित्र, दीवालों पर बने सिंह तथा गवाक्षों से झाकती हुई कामिनियों के उल्लेख हैं । इस परिच्छेद में इस सम्पूर्ण सामग्री का विवेचन किया गया है । परिच्छेद तीन में यशस्तिलक की वास्तुशिल्प विषयक सामग्री का विवेचन किया गया है । सोमदेव ने विभिन्न प्रकार के शिखर युक्त चैत्यालय गगनचुम्बी महाभागभवन, त्रिभुवनतिलक नामक राजप्रासाद, लक्ष्मीविलासतामरस नामक प्रास्थान मंडप, श्रीसरस्वतीविलासकमलाकर नामक राजमंदिर, दिग्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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