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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन नालीकिनी (आकुलभवनालोकिनी निश्रेणीकम् (असोधतलमपि सनि
काननम्, २१७।३): कमलिनी श्रेणीकम् १९७।१ उत्त०): खजूर वृक्ष नासीरः (तव नासीरोद्धतरेणुराग, निषद्या (२२५।१ हि०): शाला, भवन १८५।६) : सेना
निष्कुटोद्यानम् (निष्कुटोद्यानपादप, निगलः (४४०१९): लोहे की सांकल २०५६३): गृहवाटिका निगद्यागमम् (निगद्यागममिव गहनाव- नीकः (असमनीकरसिकमपि सकवचम्
सानम्,१९३१५ उत्त०): गणित शास्त्र १९७१३ उत्त०): छोटी नदी, नहर निचिकी (निचिकी निटलनिक्षिप्यमाण, नेत्रः (१६९।५ उत्त०) : एक प्रकार१८४८ उत्त०) : गाय । कलोर या
मोरया का मृग उत्तम नई गाय
नेत्रम् (३६८।२) : एक प्रकार का निचुलः (निचुलमूलविलनिलीन, महीन वस्त्र १०११६): वृक्ष
नैकषेयः (गोमायुनकषेयजुष्यमाण, नित्यजागरूकसुतः (१८७।३ उत्त) ४९।२) : राक्षस कुत्ता
पत्सलम् (भवेत्पत्सलवत्सल,५०८१८): निपः (४९।२) : घड़ा
भोजन निपाजीवः (निपाजीव इव स्वामि- पतत्रिन् (२५९।८) : पक्षी स्थिरीकृतनिजासनः, ३९०७): पट्टिशः (प्रासपट्टिशबाणासनम् ४६५। कुंभकार
१) : पट्टिश नामक अस्त्र निलोठनम् (सोपानमार्गेण निलोठितः, पटोलम् (नेत्रचीनचित्रपटीपटोलरल्लि
१९०८ उत्त०): लुढ़काना। लुठ धातु का, ३६८१२) : गुजरात की पटोल से नि उपसर्गपूर्वक निलोठिन् शब्द नामक साड़ी या पटोल वस्त्र । बनाया गया है।
पर्पट:(सद्यः संभृष्टाः पपंटाः,५१६६८): निलिम्पकः (१८।२): देव। मो० वि० पापड़
में निलिम्प शन्द आया है। परमान्न (शर्करासंपर्कसमासन्नैः, परनिवर्तनम् (त्रिचतुराणि निवर्तनान्यति- मान्नः, ४०२।४) : खीर क्रान्तम्. १३९।२) : श्रुतसागर ने इसे परिणयः (८१६ उत्त०) : विवाह क्षेत्रमयमान कहा है। व्यवहार की परिधानम् (परिघानेन वृत्तमौलिः भाषा में दो-तीन फलांग, इसी तरह पुमानिव, ३८५।८): घोतो, परदनिया' दो-तीन खेत या निवर्तन कहा देशी भाषा में आज भी प्रचलित है। गया है।
परुषरश्मिः (५९७३१ उत्त०): सूर्य निशादर्शः (८५।३) : चन्द्र परेष्टुका (पूगतिथिभिः परेष्टुकाभिः, नशिीथिनी (३५७ ४) : रात्रि १८६।१ उत्त०): बहुत बार व्याई हुई
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