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यशस्तिलक की शब्द- सम्पत्ति
लिए दुहिणद्विज शब्द का प्रयोग किया है । अन्यत्र ऐसा प्रयोग नहीं मिलता । सोमदेव ने हंस के लिए एक स्थान पर द्रुहिणवान भी कहा है (द्रुहिणवाहन स्थितिप्रभेदिषु, ७२/२) । देवखातः ( मरुस्थलेष्विव देवखातेषु, ६८।५ ) : अगाध सरोवर दैर्घिकेयम् (परिम्लायत्सु दैधिकेयकान्तारेसु, ६७।३ ) : कमल, दीर्घिका में उत्पन्न होने वाला । अर्थ के आधार पर सोमदेव ने यह शब्द स्वयं रच लिया है । कोश ग्रन्थों में इसका प्रयोग नहीं मिलता | दौलेयः ( पंकिलगर्त गर्न र मिल द्दौलेयवाल: २१७/५ उत्त० ) : कच्छप, कछुआ
घुसदः (१९८६) : देव
ध्वजिन् (ध्वजकुल जातस्तातः, ४३०| १ ) : तेली
ध्यामलम् (निर्वामधूमध्यामलेषु, ६६ । १ ) : मलिन
धगद्धगिति ( २२७ ३ उत्त० ) : धगधग होता हुआ, व्यवहार में घधकघधक कर जलना का प्रयोग होता है । धनंजयः ( प्रवर्धमानध्यानधैर्य धनंजय
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धिष्ण्यम् ( धनदधिष्ण्यमिवाण्यस्थाणुपरिगतम्, २४६ । १ ) : मन्दिर, कुबेर के मन्दिर को धनदधिष्ण्य कहते थे । धूमकेतुः (२५४।८ ) : अग्नि धेनुः (१८४ / ६ उत्त० ) : दूध देनेवाली
गाय
धेनुप्रिया (४९७।६) हथिनी धेनुष्या (११।७ उत्त० ) : उत्तम गाय नखायुध: ( ६८।१) : शेर नन्द्यावर्त
(स्वस्तिकनन्द्यावर्तविण्या
साभिः, २९७।५ ) : एक मांगलिक
उपकरण
नन्दिनी (नन्दिनी नरेन्द्रस्य, १३५1१ ) : उज्जयिनी
नमतम् (नमताजिनजेणाजीवनोटजाकुले, २१८।९ उत्त० ) : ऊनी नमदे, ऊन को कूटकर जमाया गया मोटा वस्त्र | आज भी कश्मीर में नमदे बनते हैं । निर्णयसागर वाली प्रति का तमत पाठ गलत है । नरकारि (२९३/७ हि०) : विष्णु नाकु: ( अनेकनाकुनिर्गलनिर्मोक, १९८० ४ उत्त० ) : वल्मीक, साँप का बिल जिसे देशी भाषा में 'बाँबी' कहा जाता है ।
६२।३ ) : अग्नि
नागरंग ( ९५/५ ) : नारंगी
धृतराष्ट्रः (२०६।५ उत्त० ) : धृत नाटेर (१९४/२ उत्त० ) : अभिनेता राष्ट्र, हंस
धृष्णिः ( हिमधामघृष्णिसंधुक्षित, १९/३ ) : सूर्य किरण धान्वन्धरा ( धान्वन्धरारन्ध्रेष्विव प्रधिषु ९८ ५ ) : मरुभूमि
मो० वि० में नाटेर का अर्थ अभिनेत्री का लड़का किया है । नाड़ीजंघ ( १२४ । १० उत्त ० ) : बन्दर नाथहरि ( उन्माथनाथहरियूथयुद्ध - बाध्यमान, १८५३ ) : वृषभ
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