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यशस्तिलककालीन भूगोल जातो है । यह जम्मू के निकट बहतो है । उससे आगे वितस्ता (झेलम) के साथ दबाव बनाती हुई दक्षिण-पश्चिम की ओर जाती है ।१६ ८. सरस्वती
सरस्वती नदी का दो बार उल्लेख है। इसके किनारे उदवास करने वाले तापस रहते थे।१७
सरस्वती हिमालय की शिवालिक पहाड़ी से निकलकर यमुना और शतद्र ( सतलज ) के बीच दक्षिण की ओर बहती हुई मनु के अनुसार विनाशन में पहुँचकर अदृश्य हो जाती है । ६. सरयू
सरयू हिमालय की शिवालिक पहाड़ी से निकलकर गंगा में मिली है । १०. शोण
यह मैकाल की पहाड़ियों से निकल कर उत्तर-पूर्व की ओर बहती हुई पटना के पूर्व गंगा में मिल जाती है। ११. सिन्धु
हिमालय के कैलासगिरि से निकल कर वर्तमान में पश्चिमी पाकिस्तान में बहती हुई अरबसागर में गिरी है । १२. सिप्रा
सिप्रा उज्जयिनी नगरी के समीप में बहती थी। रात्रि में सिप्रा की ठंडी. ठंडी हवा उज्जयिनी के नागरिकों के भवनों में गवाक्षों ( जालमार्ग ) से प्रवेश करके उन्हें आनन्दित करती थी ।१९ पांचवें आश्वास में सिप्रा का अतिविस्तृत आलंकारिक वर्णन किया गया है। वर्तमान सिप्रा ही प्राचीनकाल में भी सिप्रा कहलाती थी।
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१६. बी० सी० ला० - हिस्टॉरिकल ज्योग्राफी ऑव ऐन्सियट इण्डिया, पृ. ७३ १७. सरस्वतीसलिलोदासतापसे । -पृ० ५७५ १८. वही, पृ० १२१ १६. नक्तं सिप्रानिलैर्यत्र । पृ० २०५
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