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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
इस प्रकार यशस्तिलक में वर्णित यन्त्रशिल्प के उपर्युक्त तुलनात्मक विवेचन से प्राचीन वास्तुशिल्प का रमणीय दृश्य प्रस्तुत हो जाता है। बाण की साक्षी से यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि भारतीय वास्तुशिल्प में इस तरह का यान्त्रिक विधान छठी-सातवीं शती से प्रारम्भ हो गया था। हेमचन्द्र के विवरण से बारहवीं शती तक इसके स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त होते हैं । ___ वारियन्त्रों के विषय में भोज ने कहा है कि इनके निर्माण करने के दो उद्देश्य होते हैं- एक तो क्रीड़ा निमित्त, दूसरे कार्य सिद्धयर्थ ।३४ अन्य यन्त्रों के विषय में भी यही बात कही जा सकती है। ___ यन्त्रधारागृह में वारियन्त्रों से विभिन्न रूपों में जल झरते हए दिखाकर मनोरंजन के विविध उपादान उपस्थित किये जाते थे । इन वारियन्त्रों में जल पहुँचाने का एक विशेष प्रकार था। प्राचीन राजप्रासादों में बहते हुए जल की एक कृत्रिम नदो होती थी, जिसे संस्कृत साहित्य में दीपिका कहा गया है। दीपिका में या तो किसी पर्वतीय नदी आदि से जल का प्रबन्ध किया जाता था अथवा प्रायः राजभवन के ही एक भाग में जल को ऊपर किसी स्थान में संगृहीत कर लिया जाता था। यही जल जब वारियन्त्रों में छोड़ा जाता था तो ऊपरी दबाव के कारण तेजी से निकलता था।
३४. क्रीडार्थ कार्यसिद्धयर्थम् • समरांगणसूत्रधार ३१।१०६ ३५. अग्रवाल-कादम्बरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ३७२
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