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________________ २६४ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन इस प्रकार यशस्तिलक में वर्णित यन्त्रशिल्प के उपर्युक्त तुलनात्मक विवेचन से प्राचीन वास्तुशिल्प का रमणीय दृश्य प्रस्तुत हो जाता है। बाण की साक्षी से यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि भारतीय वास्तुशिल्प में इस तरह का यान्त्रिक विधान छठी-सातवीं शती से प्रारम्भ हो गया था। हेमचन्द्र के विवरण से बारहवीं शती तक इसके स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त होते हैं । ___ वारियन्त्रों के विषय में भोज ने कहा है कि इनके निर्माण करने के दो उद्देश्य होते हैं- एक तो क्रीड़ा निमित्त, दूसरे कार्य सिद्धयर्थ ।३४ अन्य यन्त्रों के विषय में भी यही बात कही जा सकती है। ___ यन्त्रधारागृह में वारियन्त्रों से विभिन्न रूपों में जल झरते हए दिखाकर मनोरंजन के विविध उपादान उपस्थित किये जाते थे । इन वारियन्त्रों में जल पहुँचाने का एक विशेष प्रकार था। प्राचीन राजप्रासादों में बहते हुए जल की एक कृत्रिम नदो होती थी, जिसे संस्कृत साहित्य में दीपिका कहा गया है। दीपिका में या तो किसी पर्वतीय नदी आदि से जल का प्रबन्ध किया जाता था अथवा प्रायः राजभवन के ही एक भाग में जल को ऊपर किसी स्थान में संगृहीत कर लिया जाता था। यही जल जब वारियन्त्रों में छोड़ा जाता था तो ऊपरी दबाव के कारण तेजी से निकलता था। ३४. क्रीडार्थ कार्यसिद्धयर्थम् • समरांगणसूत्रधार ३१।१०६ ३५. अग्रवाल-कादम्बरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ३७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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