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. यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
वाद्यों के लिए वीणा नाम का सामान्य प्रयोग होता है। सोमदेव ने भी सामान्य अर्थ में प्रयोग किया है । वीणाएं तार तथा बजाने के प्रकार भेद से अनेक प्रकार की होती हैं । संगीतरत्नाकर में दस भेद आये हैं। १६. झल्लरी
झल्लरी का यशस्तिलक में दो बार उल्लेख है ।४७ भरत ने नाट्यशास्त्र में झल्लरी का उल्लेख किया है।४८ संगीतरत्नाकर में इसे अवनद्ध वाद्यों में गिनाया गया है। यह एक ओर चमड़े से मढ़ा वाद्य है, जो बायें हाथ में पकड़कर दायें हाथ से बजाया जाता है।४९ इसके बहुत छोटे आकार को भाण कहते हैं ।
अहोबल ने झालर का उल्लेख किया है। श्री चुन्नीलाल शेष ने झालर और झल्लरी को एक माना है ।" किन्तु यह मानना ठीक नहीं। झालर एक प्रकार का घन वाद्य है जब कि झल्लरी अवनद्ध वाद्य । १७. वल्लकी
यशस्तिलक में वल्लकी का एक बार उल्लेख है। संगीतरत्नाकर में भी इसका उल्लेख आता है, किन्तु विशेष विवरण नहीं है।
वल्लको लौकी शब्द का अपनश रूप प्रतीत होता है। गोल लौकी या तूंबी लगाकर बनायी गयी वीणा विशेष को वल्लको कहा जाता था। .१८. परराव
यशस्तिलक में पणव का एक बार उल्लेख हैं। यह एक प्रकार का छोटा ढोल है। भरत ने अवनद्ध वाद्यों में इसका उल्लेख किया है। बाद में इसका लोप हो गया लगता है। संगीतरत्नाकर तथा संगीतराज में इसके उल्लेख नहीं है।
४७. पृ० ५८२, पृ० ३८४ उत्त० ४८. नाट्यशास्त्र ३३॥१३, १६ ४६. संगीतरत्नाकर ६।११३८. ५०. ब्रजमाधुरी, वर्ष १३, अंक ४, पृ० ४७ ५१. पृ० ५८१ ५२. संगीतरत्नाकर ३१२१३ ५३. पृ० ३८४ उत्त० ५४. नाट्यशास्त्र ३३३१०, १२, १६, ५८
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