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________________ २३० यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन ६. करटा यशस्तिलक में करटा का उल्लेव युद्ध के प्रसंग में है। सोमदेव ने लिखा है कि रणवीरों को उत्साहित करने वालो करटाएं बजी। करटा का अर्थ श्रुतसागर ने वादिन विशेष किया है। __ करटा एक प्रकार का अवनद्ध वाद्य है । इसका खोल असन वृक्ष की लकड़ी का दो मुंह का बनता है। दोनों ओर चौदह अंगुल वर्तुलाकार चमड़े से मढ़ा जाता है। यह कमर में बांध कर अथवा कन्धे पर लटका कर दोनों हाथों से बजाया जाता है। १०. त्रिविला यशस्तिलक में त्रिविला का दो बार उल्लेख है। युद्ध के प्रसंग में सोमदेव ने लिखा है कि समरदेवता की छाती फुलाने वाली त्रिविलाएं विलंबित लय में बज रही थीं। त्रिविलो को संगीतरत्नाकर में अवनद्ध वाद्यों में गिनाया है। त्रिविला और त्रिविली एक ही वाद्य ज्ञात होता है। यह दोनों ओर चमड़े से मढ़ा तथा मध्य में मुष्टिप्राह्य होता है। सूत की डोरियों से कसाव लाया जाता है। इसके मुंह सात अंगुल के होते हैं और दोनों ओर हाथों से बजाया जाता है। यह डमरुक से मिलता-जुलता प्रकार है। ११. डमरुक डमरुक का यशस्तिलक में युद्ध के प्रसंग में एक बार उल्लेख है । सोमदेव ने लिखा है कि निरन्तर बज रहे डमरुओं की ध्वनि सुनते-सुनते युद्ध में राक्षसियाँ जमुहाई लेने लगीं। डमरुक का प्रचलन आज भी है और इसे डमरु कहा जाता है। डमरु दोनों ओर चमड़े से मढ़ा हुआ काठ का वाद्य है जो बीचमें पकड़ने के लिए पतला रहता है । बजाने के लिए दोनों ओर रस्सी में छोटी छोटी लकड़ियाँ बंधी रहती हैं । डमरु बीच में पकड़कर हिला हिलाकर बजाते हैं। ३६. प्रोत्तालितासु रणरसोत्साहितसुभटघटासु करटासु ।-पृ० ५८१ ३७. संगीतरत्नाकर ६।१०७८-८४ । ३८. विलसन्तीसु विलम्बलयप्रमोदितकदनदेवतावक्षस्थलासु त्रिविलासु ।-पृ० ५८१ ३६. संगीतरत्नाकर ६११४०-४४ ४०. प्रवर्तितेषु निरन्तरध्वनिप्रवर्तिताइवचरराक्षसीकेषु डमरुकेषु ।-पृ० ५८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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