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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
सुन्दर और प्रियदर्शन होता है । जिन स्त्रियों का दर्शन भी दुर्लभ हो वे भी गीतसे आकर्षित होकर ऐसी चली आती हैं जैसे पाश से खिंवो चली आती हों। कुशल गीतकार के द्वारा गाया गया गीत मनस्विनी स्त्रियों के मन में भी एक विचित्र-सी स्थिति पैदा कर देता है।
गीत और स्वर का अनन्य सम्बन्ध है। सोमदेव ने सप्त स्वरोंका उल्लेख किया है ( सप्तस्वरैः, पृ० ३१९)। अमरकोषकार ने वोणा के सात स्वर बताए है-(१) निषाद, (२) ऋषभ, (३) गान्धार, (४) षड्ज, (५) मध्यम, (६) धैवत, (७) पंचम ( १।३।१)। हस्ति के वृंहित-जैसे स्वर को निषाद, बैल-जैसे स्वर को ऋषभ, धनुष्टंकार-जैसे स्वर को गान्धार, मयूर-जैसे स्वर को षड्ज, कौंच जैसे स्वर को मध्यम, घोड़े के ह्रषित जैसे स्वर को धैवत तथा कोयल के कूकने-जैसे स्वर को पंचम स्वर कहते हैं ।
वाद्य
यशस्तिलक में वाद्यविषयक बहुमूल्य और प्रचुर सामग्री के उल्लेख हैं। सब का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है:
पातोद्य
यशस्तिलक में वाद्यों के लिए सामान्य शब्द आतोद्य आया है। सोमदेव ने लिखा है कि नन्दिगण आतोद्य के द्वारा सरस्वती का पूजन करते थे। नाट्यशास्त्र तथा अमरकोष में भी चार प्रकार के वाद्यों के लिए सम्मिलित शब्द आतोद्य ही दिया है।
१. एष हि किल निसर्गकलकण्ठतया शुष्कानपि तरून् पल्लवयतोत्यनेकशः कथितं कुमारेण । गृणन्ति च कलासु गीतस्य व परं महिमानमुपाध्यायाः। सुप्रयुक्तं हि गीतं स्वभावदुर्भगमपि नरं करोति युवतीनां नयनमनोविश्रामस्थानम् । भवति कुरूपोऽपि गायनः कामदेवादपि कामिनीनां प्रियदर्शिनः। गानेन हि दुर्दर्शा अपि योषितः पाशेनाकृष्टा इव सुतरां संगच्छन्ते। कुशलैः कृतप्रयोगं हि गेयमपनीय मानग्रहमपरमेव कंचिदनन्यजनसाध्यमाधिमुत्पादयति मनस्विनीनाम् ।-पृ० ५५ उत्त० २. अमरकोष, सं० टी० ११३६१ ३. अातोयेन च नंदिभिः । पृ० ३११ ४. नाट्यशास्त्र २८११, अमरकोष १३१६
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