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परिच्छेद एक
गीत, वाद्य और नृत्य
गोत, वाद्य और नृत्य के लिए प्राचीन शब्द तौर्यत्रिक था। अमरकोषकार ने लिखा है कि तौर्यत्रिक शब्द से गीत, वाद्य और नृत्य का ग्रहण होता है ( अमरकोष, १।६।११)। सोमदेव ने लिखा है कि मारिदत्त राजा ने तोर्यत्रिक में गन्धर्व लोक को जीत लिया था ( तौर्यत्रिकातिशयविशेषविजितगन्धर्वलोकः, १९।६, हिन्दी )। सोमदेव के युग में गीत, वाद्य और नृत्य का खूब प्रचार था। सम्राट यशोधर को गोतगन्धर्व चक्रवर्ती, वाद्यविद्याबृहस्पति तथा नृत्तवृत्तान्तभरत ( ३७६३७७ हिन्दी ) कहा गया है। गन्धर्व जाति संगीत में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। बृहस्पति द्वारा वाद्यविद्या पर लिखित कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता । वे विद्या के देवता अवश्य माने जाते हैं । भरतमुनि का नाट्यशास्त्र प्रसिद्ध है । सोमदेव ने भरतमुनि का अनेक बार स्मरण किया है। सहस्रकूट चैत्यालय को भरतपदवी के समान विधि, लय और नाट्य से युक्त बताया है ( भरतपदवी इव विधिलयनाटया. डम्बरः २४६।२३, उत्त० )। नृत्त , नाट्य, ताण्डव, अभिनय आदि के विशेषज्ञ भरत-पुत्रों का भी सोमदेव ने स्मरण किया है ( ३२० । २.३, हिन्दी )। __दशवीं शताब्दी में संगीत, वाद्य और नृत्य का विशेष प्रचार था। यशोधर का हस्तिपक इतना अच्छा गाता था कि महारानी भी पाशाकृष्ट की तरह उसकी और खिच गयों। छठे आश्वास को दशवीं कया में धन्वन्तरी नगर-नायक के घर रात्रि में नृत्य देखते रहने के कारण देर से घर लौटता है। महाराज यशोधर स्वयं नाट्यशाला में जाकर रंगपूजा करते हैं तया नृत्य आदि के विशेषज्ञों के साथ नाट्यशाला में अभिनय आदि देखते हैं ( ३२०, हिन्दी )। गीत
यशस्तिलक में गीत के विषय में पर्याप्त जानकारी आयी है। यशोधर कहता है-'उसका गला इतना मधुर है कि उसके गाने से सूखे वृक्ष भी पल्लवित और पुष्पित हो जाते हैं । ललित कलाओं में गीत का विशेष महत्त्व है। गाने में उस्ताद मनुष्य यदि स्वभाव से क्रूर भी हो तो भी स्त्रियाँ उसकी ओर आकर्षित होती है। गायक यदि कुरूप भी हो तो भी वह स्त्रियों के लिए कामदेव के समान
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