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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन २१९ ३५. क्षेपरिणहस्त क्षेपणिहस्त का एक बार उल्लेख है। यह एक लम्बी रस्सी में बीच में चमड़ा या रस्सी का ही बिना हुआ चौड़ा पट्टा-सा लगाकर बनाया जाता है। इस पट्टे में पत्थर के टुकड़े रख कर जोर से घुमाकर छोड़ते हैं। वर्तमान में इसे 'गुथनियाँ' कहते हैं । इसके द्वारा फेंका गया पत्थर का टुकड़ा बन्दूक की गोलो की तरह चोट करता है । पक्षियों से खेत की रखवाली करने के लिए रखवाला एक ऊँचे मचान पर से क्षेपणिहस्त द्वारा चारों ओर दूर-दूर तक पत्थर फेंकता है। जोर से क्षेपणिहस्त छोड़ने से सन्न-न-न की आवाज होती है। सोमदेव ने भी इसी भाव को व्यक्त किया है। वे कहते हैं कि हे राजन्, राजधानी रूपी खेत में स्थित होकर दूरस्थ भी शत्रुरूपी पक्षियों को सेनारूपी पत्थरों के द्वारा महान् शब्द करते हुए क्षेपणिहस्त को तरह भगाओ ( या मारो ) । ३५ ३६. गोलघर गोलधर का एक बार यशोधर के जुलूस के प्रसंग में उल्लेख है। संस्कृत टीकाकार ने इसका पर्याय गोफणहस्त किया है। आप्टे साहब ने गोलासन का एक अर्थ एक प्रकार की बन्दूक भी किया है। 3८ १३५. दूरस्थानपि भूपाल क्षेत्रेऽस्मिन्नरिपक्षिणः । बलोपलमहाघोषः क्षिप क्षेपणिहस्तवत् ॥-पृ० ३६ १३६. गोलधनुर्धरगोधा धिष्ठितवृत्तिभिः ।-पृ० ३३२ १३७. गोलधराश्च गोफणहस्ताः ।-वही, सं० टी० १३८, ए काइंड श्राफ गन, आप्टे - संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरो, पृ० ६७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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