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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन आपण कहा है ।१३ स्रग्जीवी मालाएँ हाथों में लटका-लटकाकर ग्राहकों को अपनी ओर आकृष्ट करते थे ।१४
बाजार प्रायः पाम रास्तों पर ही होते थे । सोमदेव ने लिखा है कि सायंकाल होते ही राजमार्ग खचाखच भर जाते थे।'५ भीड़ में कुछ ऐसे नागरिक होते थे, जो रात्रि के लिए संभोगोपकरणों का इन्तजाम करने उत्साह पूर्वक इधर-उधर घूम रहे होते ।।६ कुछ रूप का सौदा करने वाली वारविलासिनियाँ घमण्डपूर्वक अपनेहाव-भाव प्रदर्शित करती हुई कामुकों के प्रश्नों की उपेक्षा करती टहल रही होतीं। १७ कुछ ऐसी दूतियाँ जिनके हृदय अपने पतियों द्वारा सुनायी गयी किसी अन्य स्त्री के प्रेम की घटना से दुःखी होते, अपनी सखियों की बातों का उत्तर दिये बिना ही चहलकदमी कर रही होती । १८ पैण्ठास्थान
व्यापार की बड़ी-बड़ी मंडियां पैण्ठास्थान कहलाती थीं। पैण्ठास्थानों में व्यापारियों को सब प्रकार की सुविधाओं का प्रबन्ध रहता था। यहां दूर-दूर तक के व्यापारी पाकर अपना धन्धा करते थे। सोमदेव ने एक पैण्ठास्थान का सुन्दर वर्णन किया है । उस पैण्ठास्थान में अलग-अलग अनेक दुकानें बनायी गयी थीं। सामान की सुरक्षा के लिए बड़ी-बड़ी खोड़ियां या स्टोर हाउस थे। पोखरों के किनारे पशुधन की व्यवस्था थी। पानी, अन्न, ईन्धन तथा यातायात के साधन सरलता से उपलब्ध हो जाते थे। सारा पैण्ठास्थान चार मील के घेरे में फैला था। चारों ओर सुरक्षा के लिए अहाता और खाई थे । पाने-जाने के लिए निश्चित दरवाजे और मुख्य द्वार थे। सैनिक सुरक्षा का समुचित प्रबन्ध था। हर गली में प्याऊ, भोजनालय, सभाभवन पर्याप्त थे। जुआड़ी, चोर-चपाटों प्रौर बदमाशों पर
१३. गाजीविनामापणरंगभागेषु ।-प०१८ उ० १४. करविलंबितकुसुमसरसौरभसुमगेषु ।-वही १५. समाकुलेषु समन्ततो राजवीथिमण्डलेषु । -वही १६. ससंभ्रमामतस्ततः परिसर्पता संभोगोपकरणाहितादरेण पौरनिकरण ।-वही १७. निजविलासदर्शनाहकारिमनोरथामिरवधीरितविटमुधाप्रश्नसंकथामिः पण्यांगना
समितिभिः।-पृ०.१६ उत्त.... ५८. आत्मपतिसंदिष्टघटनाकुलुतहृदयेनावीरितसखीननसंभाषणोचरदानसमयेनसंच
रिता संचारिकानिकायेन । -वही . ।
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