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परिच्छेद ग्यारह
कृषि तथा वाणिज्य आदि
यशस्तिलककालीन भारतवर्ष आर्थिक दृष्टि से पर्याप्त समृद्ध था । जिस प्रकार साहित्य और कला के क्षेत्र में उस युग में प्रगति हुई, उसी प्रकार प्रार्थिक जीवन में भी । सोमदेव ने कृषि, वाणिज्य, सार्थवाह, नौसन्तरण और विदेशी व्यापार, विनिमय के साधन, न्यास इत्यादि के विषय में पर्याप्त जानकारी दी है । संक्षेप में उसका परिचय निम्नप्रकार है
कृषि
कृषि के लिए अच्छी और उपजाऊ जमीन, सिंचाई के साधन, सहज प्राप्य श्रम और साधन आवश्यक हैं। सोमदेव ने यौधेय जनपद का वर्णन करते हुए लिखा है कि वहाँ की जमीन काली थी । सिंचाई के लिए केवल वर्षा के पानी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था । २ श्रमिक भी सहज रूप में उपलब्ध हो जाते थे । कुछ श्रमिक ऐसे होते थे जो अपने-अपने हल इत्यादि कृषि के औजार रखते थे तथा बुलाये जाने पर दूसरों के खेत जोत-बो जाते थे । सोमदेव ने ऐसे श्रमिकों के लिए समाश्रित प्रकृति पद का प्रयोग किया है । ३ श्रुतसागर ने इसका अर्थ अठारह प्रकार के हलजीवी किया है । इस प्रकार के हलजीवियों की कमी नहीं थी ।
खेती करने में विशेषज्ञ व्यक्ति क्षेत्रज्ञ कहलाता था और उसकी पर्याप्त प्रतिष्ठा भी होती थी । कृषि की समृद्धि का एक कारण यह भी था कि सरकारी लगान उतना ही लिया जाता था जितना कृषिकार सहज रूप में दे सके । ६ यही सब कारण थे कि कृषि की उपज पर्याप्त होती थी और वसुन्धरा पृथ्वी चिन्तामणि के
१. कृष्णभूमयः । - पृ० १३
२. अदेवमातृका । —— वहीं | सुलभजलः । - वही
३. समाश्रितप्रकृतयः | वही
४. हलबहुल: । वही
५.
क्षेत्रज्ञप्रतिष्ठाः । - वही
६. भर्त कर संबाधसहाः । पृ० १४
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