SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन १२९ कि दुकूल अलसी से बने कपड़े को कहते हैं ।५९ भारतवर्ष के पूर्वी भागों में (आसाम-बंगाल ) में यह क्षुमा या अलसी नामक घास बहुतायत से होती थी। बंगाल में इसे कांखुर कहा जाता था ।६० दुकूल और क्षौम इसी घास के रेशों से बनने वाले वस्त्र रहे होंगे। ___ सोमदेव ने दुकूल का कई बार उल्लेख किया है, किन्तु क्षौम का एक बार भी नहीं किया। सम्भव है सोमदेव के पहले से ही दुकूल और क्षौम पर्यायवाची माने जाने लगे हों और इसी कारण सोमदेव ने केवल दुकूल का प्रयोग किया हो। सोमदेव के उल्लेखों से इतना अवश्य मानना चाहिए कि दशवीं शताब्दी तक दुकूल का खूब प्रचार था तथा वह वस्त्र, संभ्रान्त और बेशकीमती माना जाता था। अंशुक-यशस्तिलक में कई प्रकार के अंशुक का उल्लेख है-अंशुक सामान्य या सफेद अंशुक ६१, कुसुम्भांशुक या ललाई लिए हुए रंग का अंशुक६२, कार्दमिकांशुक अर्थात् नीला या मटमैले रंग का अंशुक ।६३ अंशुक भारत में भी बनता था तथा चोन से भी आता था। चीन से आने वाला अंशुक चीनांशुक कहलाता था। भारतीय जन दोनों प्रकार के अंशुकों से बहुत काल से परिचित हो चुके थे। चीनांशुक के विषय में ऊपर चीन वस्त्र की व्याख्या करते हुए विशेष लिखा जा चुका है, अतएव यहाँ केवल अंशुक या भारतीय अंशुक के विषय में विचार करना है। कालिदास ने सितांशुक,६४ अरुणांशुक,६५ रक्ताशुक,६६ नीलांशुक,६७ तथा श्यामांशुक ६८ का उल्लेख किया है । सम्भवतः अंशुक पहले सफेद बनता था, बाद ५६. दुकूलमतसीपटे ।-शब्दरत्नाकर, ३१२१९ ६०. डिक्सनरी आफ इकनोमिक प्रॉडक्ट्स, भा. १, पृ० ४६८.४६६ । उद्धत, अग्रवाल-हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ७६.७७ ६१. सितपताकांशुक ।-यश. उत्त०. पृ० १३ ६२. कुसुम्भांशुकपिहितगौरीपयोधर ।--वही. पृ० १४ ६३. कादमिकांशुकाधिकृतकायपरिकरः।-वही, पृ० २२० ६४. सितांशुका मंगलमात्रभूषणा ।-विक्रमोर्वशी, ३, १२ ६५. अरुणरागनिषेधिभिरंशुकैः ।-रघुवंश. ९, ४३ ६६. ऋतुसंहार. ६, ४. २६ ६७. विक्रमोर्वशी, पृ० ६० ६८. मेघदूत, पृ. ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy