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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
१.१५
व्यायाम -- पाचन क्रिया ठीक से रहे इसलिए व्यायाम करना आवश्यक है । जिस तरह बिना चलाए बटलोई में अन्न ठीक नहीं पक सकता उसी तरह व्यायाम न करने पर पाचन क्रिया ठीक नहीं होती । ३७
रोग और उनकी परिचर्या
यशस्तिलक में निम्नलिखित रोगों के बारे में जानकारी दी गयी है
(१) अजीर्ण (५१९, पू० )
(२) दृग्मान्द्य (५०९, पू०, ५१८, पू० )
(३) वमन (५०९, पू० )
(४) ज्वर (५०९, पू० )
(५) भगन्दर (५०९, पू० )
(६) गुल्म (५०९, पू० ) (७) कोथ (११२ पू० ) – कुष्ट (८) कण्डू (५०८, पू० ) - -खुजली
(९) अग्निमान्द्य (५१८, पू० )
(१०) शरीर कृशहोना (५१८, पू० )
(११) देहदाह ( ५१८, पू० )
(१२) सितश्वित ( उत्त० २२३ ) – सफेद कुष्ट, बहने वाला
अजीर्ण - अजीर्ण के लिए सोमदेव ने दो नाम दिये हैं- (१) विदाहि, (२) दुर्जर |
कारण – प्रजीर्ण का मुख्य कारण उचित नोंद न लेना तथा व्यायाम न करना है । जिस तरह खुली हुई बटलोई में बिना चलाये अन्न ठीक से नहीं पकता ठीक उसी तरह निद्रा न लेने से तथा व्यायाम न करने से पाचन क्रिया भी ठीक नहीं होती । ३६
पितृमातृसुहृद्वैद्यपाककृद्ध सबहिंणाम् ।
सारसस्य चकोरस्य भोजने दृष्टिरुत्तमा । श्रहा तु रहः कुर्यान्निहरमपिसर्वदा । उभाभ्यां लक्ष्म्युपेतः स्यात्प्रकाशे हीयते श्रियः ॥
३७. देखिए, उद्धरण संख्या २८ ३८ वही
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- वहीं, पृ० १२२-२३, ० १२०-२२
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