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________________ श्री छोटालाल भाई का जन्म वि० सं० १९३५ की आषाढ़ कृष्णा १३ गुरुवार के दिन सोनगढ़ के समीप दाठा ग्राम में हुआ था । दो वर्ष के बालक को छोड़कर इनके पिता श्री केशवजी भाई स्वर्गवासी हो गये । माता श्री पुरीबाई ने इन को तथा इन के छोटे भाई छगनलाल भाई को पालियाद में प्रारम्भिक शिक्षण हेतु शाला में प्रविष्ट कराया। सातवीं गुजराती उत्तीर्ण करके श्री छोटालाल भाई सं० १९५० में व्यवसाय के लिए बम्बई आ गये । पहले-पहल नौकरी की । इसके पश्चात् ई० सन् १९१३ में मुकादमी तथा क्लीयरिंग एजेण्ट का धन्धा शुरू किया । व्यवसाय में आप को कई बार आर्थिक कठिनाइयाँ भी आयीं परन्तु उद्यम, लगन और प्रामाणिकता के कारण आप ने अच्छी सफलता प्राप्त की । सन् १९१७ में करनाक बन्दर, बम्बई में लोहे की दुकान की और लोहे के प्रमुख व्यापारी के रूप में प्रख्यात हुए । सेठ श्री छोटालाल भाई बड़े धर्म-प्रेमी और श्रद्धालु थे । साधु-मुनिराजों के प्रति आप की बहुत भक्ति थी । धार्मिक समारोहों के अवसर पर आप मुक्त हस्त से धन का सदुपयोग करते थे । उस समय बम्बई क्षेत्र में चींचपोकली के सिवाय अन्य कोई उपाश्रय नहीं था । इतनी दूर जाने में नगर - निवासियों को असुविधा होती थी अतः आपने और कतिपय अग्रगण्य बन्धुओं ने संवत् १९६१ में हनुमान गली में सेठ मंगलदास नाथुभाई को वाड़ी में पूज्य श्री अमोलक ऋषिजी म० सा० का चातुर्मास करवाया। उस समय रत्न चिन्तामणि स्था० जैन मित्र मण्डल तथा जैन शाला की स्थापना में सेठ श्री का प्रमुख हाथ रहा । आप इन के प्रारम्भिक मंत्री रहे | कांदावाड़ी में स्थानक निर्माणार्थ आप की ओर से रु० ५००० ) प्रदान किये गये । पं० श्री रत्नचन्द्रजी ज्ञानमन्दिर को ५०००), वढ़वाण केम्प बोडिंग को ३०००), पार्श्वनाथ विद्याश्रम, बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी को ५०००), बोटाद गवर्नमेन्ट अस्पताल के बाल विभाग को २०००), व्यावर साहित्य प्रचारक समितिको ५००), आम्बिल ओली, वढ़वाण केम्प को ५०० ) - इस प्रकार अनेक संस्थाओं को आपने मुक्त हस्त से दान दिया । दीक्षा प्रसंग पर वरघोड़ा आदि में तथा अन्य समारोहों पर आपने हजारों रुपयों का सदुपयोग किया । आप की उदारता अनुकरणीय रही । आप के पास आशा लेकर आया हुआ कोई व्यक्ति खाली हाथ नहीं लौटा । २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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