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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
जल को संसिद्ध करने की प्रक्रिया के विषय में टीकाकार ने लिखा है कि जल से भरा हुआ घड़ा प्रातः काल धूप में रखकर चार प्रहर रात्रि तक खुले आकाश में रखा रहने दिया जाए, यह जल सूर्येन्दु संसिद्ध कहलाता है । २५
मसाला
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लवरण ( ५१४ ) - नमक दरद (४६४ ) - हींग
क्षपारस (४६४) – हलदी मरिच (५१२) - मिरच पिप्पली (५१२ ) - छोटी पीपल राजिका (४०६ ) - राई
स्निग्ध पदार्थ, गोरस तथा अन्य पेय घृत (५१४,५१६, ५१९)
श्राज्य (२५१, ४०१)
पृषदाज्य (३२४) तैल (४०४, ५१४)
दधि (५१२, ५१४,५१६, ५१७) दुग्ध (५१८)
नवनीत (५१८ )
तक्र (५१२, ५१९)
कलि या अवन्तिसोम (४०६, ५१२, ५१९) नारिकेलिफलांभ (५१२)
पानक (५१५)
शर्कराढ्य (५१५) मधुर पदार्थ
शर्करा (५१५) सिता (५१६)
गुड़ (५१२)
मधु (५१२) इक्षु (५१४ )
२५. वही, संस्कृत टीका
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