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________________ गुणस्थान और कर्मसिद्धान्त की सात ( तीन वेद और संज्वलन चतुष्क ), आयुष्य की एक, नामकर्म की उन्तालिस, गोत्र की एक, अन्तराय की पाँच - इस प्रकार कुल ६६ कर्मप्रकृतियों का उदय सम्भव होता है। उदय की अपेक्षा उदीरणा में तीन प्रकृतियाँ इसलिये कम होती हैं कि सातवें गुणस्थान से आगे उदीरणा में वेदनीय द्विक और मनुष्य-आयु की उदीरणा सम्भव नहीं होती है, क्योंकि ऐसे अध्यवसाय ही नहीं होते हैं, जिससे उनकी उदीरणा की जा सके। १०. सूक्ष्मसम्पराय - सूक्ष्मसम्पराय नामक दसवें गुणस्थान में ज्ञानावरण की पाँच, दर्शनावरण की चार, वेदनीय की एक, नामकर्म की एक, गोत्रकर्म की एक और अन्तराय की पाँच - इस प्रकार कुल १७ कर्म-प्रकृतियों का ही बन्ध सम्भव है। सत्ता की अपेक्षा से अधिकतम १४८ और न्यूनतम उपशम श्रेणी में १३९ और क्षपकश्रेणी में १०२ कर्म-प्रकृतियों की सत्ता रहती है। जहाँ तक उदय और उदीरणा का प्रश्न है इसमें उदय की अपेक्षा से ६० और उदीरणा की अपेक्षा से ५७ कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा सम्भव है। इस गुणस्थान में नवें गुणस्थान की उदययोग्य ६६ कर्म-प्रकृतियों में से संज्वलनत्रिक और वेदत्रिक का विच्छेद होने से मात्र ६० कर्म-प्रकृतियों का ही उदय सम्भव होता है। उदीरणा में वेदनीय द्विक और मनुष्य आयु इन तीन की उदीरणा न होने से मात्र ५७ कर्मप्रकृतियाँ ही उदीरणा योग्य रहती हैं। ११. उपशान्तमोह - उपशान्तमोह नामक ग्यारहवें गुणस्थान में बन्ध की अपेक्षा से मात्र सातावेदनीय नामक एक कर्मप्रकृति का बन्ध सम्भव होता है। शेष किसी कर्म-प्रकृति का बन्ध इस गुणस्थान में नहीं होता। यद्यपि सत्ता में योग्यता की अपेक्षा से इस गुणस्थान में भी अधिकतम १४८ और उपशम श्रेणी की अपेक्षा से १३९ कर्मप्रकृतियों की सत्ता सम्भव है। इस गुणस्थान में क्षपक श्रेणी नहीं होती। जहाँ तक उदय और उदीरणा का प्रश्न है, सूक्ष्म लोभ के समाप्त हो जाने से इस गुणस्थान में उदय की अपेक्षा से पूर्व गुणस्थान से एक कम अर्थात् ५९ और उदीरणा की अपेक्षा से ५६ कर्मप्रकृतियों की उदीरणा सम्भव होती है। उदय की दृष्टि से इसमें ज्ञानावरणीय की पाँच, दर्शनावरणीय की छः, वेदनीय की दो, नामकर्म की उन्तालीस, आयुष्य की एक, गोत्र की एक और अन्तराय की पाँच - इस प्रकार कुल ५९ कर्म-प्रकृतियों का उदय सम्भव होता है। इसमें वेदनीय द्विक और मनुष्यायु इन तीन की उदीरणा सम्भव नहीं होती है। अत: उदीरणा तो ५६ कर्मप्रकृतियों की ही होती है। १२. क्षीणमोह - क्षीणमोह नामक इस बारहवें गुणस्थान में बन्ध की अपेक्षा से तो मात्र सातावेदनीय नामक एक कर्मप्रकृति का ही बन्ध सम्भव है। यद्यपि सत्ता की अपेक्षा से इसमें भी अधिकतम १०१ और न्यूनतम ९९ कर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002129
Book TitleGunsthan Siddhanta ek Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, B000, & B030
File Size6 MB
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