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________________ गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण क्रम या पौर्वापर्य मेरी दृष्टि में इस प्रकार है (१) पूर्व साहित्य का कर्म - सिद्धान्त सम्बन्धी कोई ग्रन्थ, (२) आचारांगनिर्युक्ति – आर्यभद्र, ई० सन् दूसरी शती, (३) तत्त्वार्थसूत्र - उमास्वाति, ई० सन् तीसरी-चौथी शती, (४) कसायपाहुडसुत्त – गुणधर, ई० सन् चौथी शती, (५) षट्खण्डागम - पुष्पदंत - भूबलि, ई० सन् पाँचवीं - छठीं शती, (६) गोम्मटसार – नेमिचन्द्र, ई० सन् दसवीं शती का उत्तरार्ध । सन्दर्भ ४० १. मिच्छादोसद्दिट्ठी ― असंख-गुण-कम्म- णिज्जरा तत्तो अणुवयधारी तत्तो य महव्वई पढम कसाय- चउण्हं विजोजओ तह य खवय - सीलो य । दंसण- मोह-तियस्स य तत्तो उवसमग- चत्तारि ॥ खवगो य खीण- मोहो सजोइ - णाहो तहा अजोईया | एदे उवरिं उवरिं असंख-गुण-कम्म- णिज्जरया ।। कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा ( ९/१०६ - १०८ ), स्वामीकुमार, टीका शुभचन्द्र, सं० डॉ० ए० एन० उपाध्ये, परमश्रुत प्रभावक मण्डल, श्रीमद्रराजचन्द्र आश्रम, अगास, स० १९७८ ई०. ― २. कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा, पूर्वोक्त, ९/१०६-१०८. ३. वही । ४. वही, पूर्वोक्त, भूमिका, पृ० ६९-७२. ५. वही, पूर्वोक्त, भूमिका. ६. जैनसाहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार, वीरशासन संघ, कलकत्ता, सन् १९५६, पृ० ४९४-५००. Jain Education International होदि । णाणी ।। ७. जैन शिलालेख संग्रह, भाग २, लेख क्रमांक १००, माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला समिति, शोलापुर, १९५२ ई०. ८. जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, पृ० ४९७-४९९. ९. गुणस्थान सिद्धान्त का उद्भव एवं विकास, श्रमण, जनवरी - मार्च ९२, पा० वि० शोध संस्थान, वाराणसी १०. अनेकान्त, वर्ष ४, किरण १. - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002129
Book TitleGunsthan Siddhanta ek Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1996
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Karma, B000, & B030
File Size6 MB
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