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इस तथ्य को निम्न तुलनात्मक तालिका से समझा जा सकता है।
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कसायपाहुडसुत्त
तत्त्वार्थ एवं तत्त्वार्थभाष्य
तीसरी-चौथी शती गुणस्थान, जीवसमास, जीवस्थान आदि शब्दों का
पूर्ण अभाव।
कर्मविशुद्धि या आध्यात्मिक विकास की दस अवस्थाओं का चित्रण, मिथ्यात्व का
गुणस्थान की अवधारणा का क्रमिक विकास
अन्तर्भाव करने पर ११ अवस्थाओं का उल्लेख ।
तीसरी-चौथी शती
गुणस्थान, जीवस्थान, जीवसमास आदि शब्दों का अभाव, किन्तु मार्गणा शब्द पाया जाता है।
कर्मविशुद्धि या आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से मिथ्यादृष्टि की गणना करने पर प्रकार भेद से कुल १३ अवस्थाओं का उल्लेख ।
समवायांग/ षट्खण्डागम
३
श्वेताम्बर - दिगम्बर तत्त्वार्थ की टीकाएँ एवं भगवती आराधना, मूलाचार, समयसार, नियमसार आदि
४
छठीं शती या उसके पश्चात् गुणस्थान शब्द की उपस्थिति ।
पाँचवीं शती
गुणस्थान शब्द का अभाव, किन्तु जीवठाण या जीवसमास के नाम
से १४ अवस्थाओं का
चित्रण |
१४ अवस्थाओं का उल्लेख है । । १४ अवस्थाओं का उल्लेख है ।
तत्त्वार्थसूत्र में गुणस्थान सिद्धान्त के बीज
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