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गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण
में समता चित्तवृत्ति की समत्व की अवस्था है और वृत्तिसंक्षय आत्मरमण की । समत्व हमारी आध्यात्मिक साधना का प्रथम चरण है और वृत्तिसंक्षय आध्यात्मिक साध्य की उपलब्धि ।
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सन्दर्भ
१. देखिये : विनयपिटक, चुल्लवग्ग, ४/४.
२. दर्शन और चिन्तन ( गुजराती ), पृ० १०२२.
३. भगवद्गीता : डॉ० राधाकृष्णन्, पृ० ३१३.
४. गीता, १४ / १०.
५. वही, १४/५.
६. वही, ७ / १३.
७. वही, ९/३०.
८. वही, १/१५.
९. वही, ७/१६, ७/१८ ( इसमें उदारे शब्द का प्रयोग अपेक्षाकृत है )
१०. वही,
७/२०.
११. वही, २/४३, २/४४.
१२ . वही, २ / ७.
१३. वही, २/४०.
१४. वही, ६ / ३७.
१५. वही, ९/३०.
१६. वही, ९/३१.
१७. वही, ६/४५.
१८. वही, ६ / ३७, ६/३८.
१९. वही, ६/४०.
२०. वही, १८ / २०.
२९. वही, १८ / २३.
२२. वही, १८/२६, वही, १४ / ११
२३. भगवद्गीता ( हिन्दी ) : डॉ० राधाकृष्णन्, पृ० ११४.
२४. गीता, २/४५.
२५. वही, ८ / ११.
२६. वही, ८/१२, ८/१३. २७. वही, ८/१०
२८. कालिदास, रघुवंश, १/८.
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