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गुणस्थान सिद्धान्त की अवधारणाओं का तुलनात्मक अध्ययन ११९
स्वभावदशा की ओर उन्मुख होती है। इस अवस्था में व्यक्ति का आचरण सामान्यतया निर्दोष होता है। इस अवस्था में होने वाले तत्त्व - बोध की तुलना रत्न की प्रभा से की जाती है, जो निर्दोष तथा स्थायी होती है।
६. कान्तादृष्टि और धारणा : कान्तादृष्टि योग के धारणा अंग के समान है । जिस प्रकार धारणा में चित्त की स्थिरता होती है, उसी प्रकार इस अवस्था में व्यक्ति में सदसत् का विवेक पूर्णतया स्पष्ट होता है । उसमें किंकर्तव्य के विषय में कोई अनिश्चयात्मक स्थिति नहीं होती है। आचरण पूर्णतया शुद्ध होता है । इस अवस्था में तत्त्वबोध तारे की प्रभा के समान एक-सा स्पष्ट और स्थिर होता है ।
७. प्रभादृष्टि और ध्यान : प्रभादृष्टि की तुलना ध्यान नामक सातवें योगांग से की जा सकती है। धारणा में चित्तवृत्ति की स्थिरता एकदेशीय और अल्पकालिक होती है, जबकि ध्यान में चित्तवृत्ति की स्थिरता प्रभारूप एवं दीर्घकालिक होती है। इस अवस्था में चित्त पूर्णतया शान्त होता है । पातंजल योगदर्शन की परिभाषा में यह प्रशान्तवाहिता की अवस्था है। इस अवस्था में रागद्वेषात्मक वृत्तियों का पूर्णतया अभाव होता है । इस अवस्था में होने वाला तत्त्वबोध सूर्य की प्रभा के समान दीर्घकालिक और अति स्पष्ट होता है और कर्ममल क्षीणप्राय हो जाते हैं ।
८. परादृष्टि और समाधि : परादृष्टि की तुलना योग के आठवें अंग समाधि से की गयी है। इस अवस्था में चित्तवृत्तियाँ पूर्णतया आत्म- केन्द्रित होती हैं। विकल्प, विचार आदि का पूर्णतया अभाव होता है । इस अवस्था में आत्मा स्व-स्वरूप में ही रमण करती है और अन्त में निर्वाण या मोक्ष प्राप्त कर लेती है। इस प्रकार यह नैतिक साध्य की उपलब्धि की अवस्था है, आत्मा के पूर्ण समत्व की अवस्था है जो कि समग्र आचार - दर्शन का सार है। परादृष्टि में होने वाले तत्त्वबोध की तुलना चन्द्रप्रभा से की जाती है । जिस प्रकार चन्द्रप्रभा शान्त और आह्लादजनक होती है, उसी प्रकार इस अवस्था में होने वाला तत्त्वबोध भी शान्त एवं आनन्दमय होता है । ३२
योगबिन्दु में आध्यात्मिक विकास
आचार्य हरिभद्र ने योगबिन्दु में आध्यात्मिक विकास क्रम की
१. अध्यात्म, २. भावना, ३.
भूमिकाओं को पाँच भागों में विभक्त किया है ध्यान, ४. समता और ५. वृत्तिसंक्षय । आचार्य ने स्वयं ही इन भूमिकाओं की तुलना योग - 1 - परम्परा की सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात नामक भूमिकाओं से की है। प्रथम चार भूमिकाएँ सम्प्रज्ञात हैं और अन्तिम असम्प्रज्ञात। इन पाँच भूमिकाओं
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