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________________ उपासकदशांग का रचनाकाल एवं भाषा कृदन्त प्रयोग १. वर्तमान कृदन्त में 'न्त' व 'माण' प्रत्यय लगकर इस प्रकार रूप बनते हैं न्त - वइकन्ता (उवा० सू० २४५) माण - भावेमाणे (उवा० मू० २) २. सम्बन्ध कृदन्त में 'इत्ता' व 'एत्ता' प्रत्यय लगकर रूप बनते हैं । यथा इत्ता = संपेहित्ता (उवा० सू० १०) एत्ता = करेत्ता (उवा० सू० २) ३. अनियमित सम्बन्ध कृदन्तों का भी प्रयोग मिलता है । यथा सोच्चानिसम्म (उवा० सू० ११) ४. अनियमित भूतकालिक कृदन्त का भी प्रयोग प्राप्त होता है । यथावण्णओ ( उवा० सू० ७) संधि विचार १. गुण संधि - गुणोववेया ( उवा० सू० ६) २. स्वरलोप संधि- राईसर = राई + इसर ( उवा० सू० १२५ ) समास पदउपासकदशांगसूत्र में लम्बे-लम्बे समासपद प्राप्त होते हैं । यथा"सिवमयलमरुअमणंतमक्खयमव्वावाहमपुणरावत्तयं" ( उवा० स०९) १. "न्त-माणौ"--प्राकृत व्याकरण-आचार्य हेमचन्द्र, ३/१८० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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