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________________ उपासकदशांग : एक परिशीलन इन शब्द रूपों के अलावा भी उपासकदशांगसूत्र में कुछ नये प्रयोग देखने में आते हैं, जैसे१. द्वितीया बहुवचन में स्वतन्त्र 'ए' का प्रयोग पाया जाता है। यथा मणुस्सए । उवा० सू० ६ । २. षष्ठी के स्थान पर सप्तमी का प्रयोग हुआ है । यथा हत्थेसु । उवा० सू० ८७ । ३. 'योनि' शब्द स्त्रीलिंग में 'ए' प्रत्यय लगने पर प्रायः ह्रस्व का दीर्घ हो जाता है, परन्तु यहां ह्रस्व ही रहा है । यथा जोणिए । उवा० सू० ११७ । ४. स्त्रीलिंग में 'ए' प्रत्यय होने पर दीर्घ की प्रवृत्ति इस प्रकार है। यथा वाराणसीए, नयरीए । उवा० सू० १२५ । ५. पंचमी के स्थान पर सप्तमी का प्रयोग भी हुआ है । यथा अभीए । उवा० सू० १०६ । ६. ऐसे शब्दों के भी प्रयोग सम्मिलित हैं जिनके नये प्रयोग प्राप्त होते हैं। यथा कल्लाकल्लि = आजकल । उवा० सू० २४२ । आढाइ = आदर । उवा० सू० २४२ । ७. कहीं-कहीं पर सप्तमी के स्थान पर तृतीया का प्रयोग हुआ है।' यथा तेणं कालेणं तेणं समएणं । उवा० सू० १ । ८. उपासकदशांग में कृत प्रत्ययान्त शब्दों का भी प्रयोग हुआ है । यथा पडिपुच्छणिज्जे । उवा० सू० ५। १. "द्वितीया-तृतीययोः सप्तमो"--प्राकृत व्याकरण-आचार्य हेमचन्द्र, ३/१३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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