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उपासक दशांग : एक परिशीलन
१. जैन आगम साहित्य पर प्राकृत भाषा में पद्यबद्ध टीकाएँ लिखो गई, जो नियुक्ति के नाम से विश्रुत हैं ।
२. नियुक्ति के गंभीर रहस्यों को प्रकट करने के लिए विस्तार से प्राकृत भाषा में जो पद्यात्मक व्याख्याएँ लिखी गयी, वे भाष्य कहलाती हैं । ३. शुद्ध प्राकृत में एवं संस्कृत मिश्रित प्राकृत में गद्यात्मक व्याख्याएँ चूर्णि कहलाती हैं ।
४. सम्पूर्ण संस्कृत में रची गयी आगमों का दार्शनिक दृष्टि से विश्लेषण करने वाली टीकाएँ कहलाती है ।
५. जन साधारण के लिए संस्कृत, प्राकृत को समझने में कठिनाई होने से लोक भाषाओं में सरल सुबोध शैली में टब्बे लिखे गये । '
उपासक दशांग सूत्र पर मुख्य रूप से टीकाएँ ही लिखी गयी, निर्युक्ति, चूर्णि, भाष्य उपलब्ध नहीं होते हैं। टीकाओं को ही आचार्यों ने विभिन्न नामों से अंकित किया है जैसे :- टीका, वृत्ति, विवृति, विवरण, विवेचन, व्याख्या, वार्तिक, दीपिका, अवचूरि, अवचूर्णि, पंजिका, टिप्पण, टिप्पणक, पर्याय, स्तबक, पीठिका, अक्षरार्थ आदि । ये टीकाएँ संक्षेप व विस्तार दोनों तरह की हैं ।
उपासक दशांग का टीका साहित्य
उपासक दशांग की निम्नलिखित टीकाएँ ( वृत्ति) प्राप्ति होती हैं। १. आचार्य अभयदेव ने उपासकदशासूत्र पर टीका लिखो जो सम्पूर्ण तया संस्कृत में लिखी गयी है । यह रायधनपतसिंह बहादूर, आजीमगंज से प्रकाशित है । इसका समय विक्रम संवत् १९३३ है । ग्रन्थ प्रमाण पृष्ठ २३३ है ।
२. आचार्य हर्षवल्लभ उपाध्याय ने उपासकदशांग पर टीका संवत् १६९३ में लिखी ।
९. वही, पृष्ठ ५५२
२. वही, पृष्ठ ५०८
३. शास्त्री, देवेन्द्रमुनि - जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा, पृष्ठ ५२२ ४. वही, पृष्ठ ५४१
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