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उपासक दशांग का परिचय
१२. अंगसुत्ताणि - आचार्य श्री पुफभिक्खु द्वारा मूत्रागम प्रकाशन समिति, जैन स्थानक, रेलवे रोड, गुड़गाँव, पंजाब से सन् १९५३ में प्रकाशित हुआ है। इसमें उपासकदशासूत्र का मूल पाठ ही है । भूमिका में अर्द्ध मागधी की व्याकरण भी है, जिससे विभक्तियों का प्रयोग समझा जा सकता है ।
१२. उपासकदशांगसूत्र - साध्वी प्रकाशन समिति, घाटकोपर बम्बई से प्रकाशित हुआ है। इसमें मूल के गया है ।
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१४. अर्थागम – भाग १, २, ३ में प्रकाशित इस ग्रन्थ में अंगसुत्ताणि 'सुत्तागमे' का हिन्दी रूपान्तर है । यह पुष्कभिक्खु द्वारा सूत्रागम प्रकाशन समिति 'अनेकान्त विहार' गुड़गाँव से प्रकाशित है । यह सन् १९७१ में प्रकाशित हुआ है ।
श्रीउर्वशीबाई द्वारा प्रेम जिनागम विक्रम संवत् २०३१ सन् १९७५ में साथ-साथ गुजराती अनुवाद दिया
१५. अंगपविट्ठसुत्ताणि - आगम अंग ग्रन्थों का संकलन रतनलाल डोसी और पारसमल चण्डालिया द्वारा अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन संस्कृति रक्षक संघ, सैलाना द्वारा प्रकाशित है । सन् १९८२ में प्रकाशित इसमें केवल मूलपाठ ही है ।
१६. उवास गदसाओ - मधुकर मुनि द्वारा सम्पादित यह संस्करण श्री जैन आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर द्वारा विक्रम संवत् २०३७ में प्रकाशित है, जिसमें मुलपाठ, अनुवाद, विवेचन और टिप्पण के साथसाथ परिशिष्ट भी जोड़ा गया है । डॉ० छगनलाल शास्त्री द्वारा लिखित इसकी प्रस्तावना उपयोगी है ।
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उपासक दशांग का व्याख्या साहित्य
आगम साहित्य के गूढ़-गंभीर, दार्शनिक, तात्त्विक व आध्यात्मिक रहस्यों को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न व्याख्या साहित्य का निर्माण किया गया । इस व्याख्या साहित्य को हम निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, टोका व श्लोक भाषा में लिखित टब्बा साहित्य इन पाँच भागों में विभक्त कर सकते हैं :
१. शास्त्री, देवेन्द्र मुनि जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा, पृष्ठ ४३५
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