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________________ आगम साहित्य और उपासकदशांग के लिए प्रयुक्त हुआ है। (ख) आगमों का दूसरा वर्गीकरण देवर्धिगणि क्षमाश्रमण के समय अर्थात् वीर निर्वाण के १००० वर्ष के आसपास का है जिनमें अंग-प्रविष्ठ व अंग-बाह्य ये दो भेद किये हैं।२ नन्दीसूत्र में आगमों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है। श्रुत अंग प्रविष्ठ अंगबाह्य आचार आवश्यक आवश्यक से भिन्न सूत्रकृत स्थान समवाय भगवती ज्ञाताधर्मकथा उपासकदशा अन्तकृतदशा अनुत्तरोपपातिक दशा प्रश्नव्याकरण विपाक दृष्टिवाद सामायिक चतुर्विंशतिस्तव वन्दना प्रतिक्रमण कायोत्सर्ग प्रत्याख्यान कालिक उत्कालिक (क्रमशः पृष्ठ १६ पर) १. दुवालसंगे गणिपिडगे-समवायांगसूत्र, समवाय ८८ २. “अहवा तं समवाओ दुविहं पण्णतं, तंजहा-अंगपविटुं अंगबाहिरं च" -नन्दीसूत्र,-(सं० ) मुनि मधुकर, पृष्ठ १६० ३. नन्दीसूत्र-( सं० ) मुनि मधुकर, सूत्र ८२, पृष्ठ १६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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