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परिशिष्ट
पारिभाषिक शब्द
उपासक दशांगसूत्र श्रावक - आचार का एकमात्र प्राचीन, प्रामाणिक व प्रतिनिधि ग्रन्थ है | श्रावक के आचार-विचार व सिद्धान्तों को वर्णित करने में अनेक ऐसे पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग हुआ है जिनका अर्थ सामान्य अर्थ से भिन्न होता है तथा जो जैन दर्शन की सैद्धान्तिक व्याख्या करने में सहायक होते हैं, ऐसे कतिपय पारिभाषिक शब्दों को यहां पर प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि उनके वास्तविक अर्थ को सरलतापूर्वक समझा जा सके । अणट्ठादंड : १/४३ = अनर्थदण्ड - ऐसे निरर्थक कार्यों को करना जो धर्म, अर्थ, काम के बिना हों उसे अनर्थदण्ड कहा गया है ।
उमाघाए : ८/२४१ - अमाघात - - इसका अर्थ जीव हिंसा का निषेध है । राजा द्वारा किसी मांगलिक अवसर पर राज्य में हिंसा नहीं करने की घोषणा को अमाघात कहा जाता है ।
अरहा : ७/१८७ = अर्हत् - इसका अर्थ पूजनीय व्यक्ति से है जो आत्मशत्रुओं को नष्ट कर देने पर अरिहन्त हो जाता है ।
अलसअ : ८ / २५५ - अलसक- पेट या आमाशय का एक प्रकार का रोग ।
असईजणपोसणया : १/५१ = असती - जन-पोषण - व्यापार के निमित्त वेश्या आदि से देह व्यापार कराना ।
आजीविभवास : ७/१८१ = आजीविकोपासक - आजीविक नामक एक धर्म सम्प्रदाय का उपासक ।
आलोएहि : ३/१४६ = आलोचना - असावधानी व प्रमादवश साधना में जो भूलें हो जाती हैं, उनकी पुनरावृत्ति न कर पूर्वकृत भूलों के लिए लिया जाने वाला दण्ड आलोचना कहलाता है ।
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