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उपासकदशांग में वर्णित समाज एवं संस्कृति २२१ चैत्य या उद्यान-नगरों के बाहर चैत्यों और उद्यानों का वर्णन भी प्राप्त होता है। उपासकदशांगसूत्र में उल्लेख मिलता है कि चम्पानगरी के बाहर पूर्णभद्रचैत्य,' वाणिज्यग्राम के बाहर दूतिपलाशचैत्य,२ वाराणसी और श्रावस्ती के बाहर कोष्टक चैत्य था । आलभिया के बाहर शंखवन, काम्पिल्यपुर तथा पोलासपुर के बाहर सहस्राम्र वन," राजगृह के बाहर गुणशील उद्यान था।' इन सभी चैत्यों, वनों तथा उद्यानों को भगवान महावीर ने अपने निवास के रूप में कुछ समय के लिये प्रयक्त किया था।
___ अन्य आगमों में भी उद्यानों का वर्णन मिलता है, जहाँ व्यक्ति उत्सव आदि पर एकत्रित होते, आराम करते एवं क्रीड़ा करते थे। सहस्रआम्रवन उद्यानों में हजार आम के वृक्ष होते थे।"
नगरों को बसावट और सुविधा-उपासकदशांगसूत्र में विभिन्न नगरों की भौगोलिक स्थिति का भी वर्णन मिलता है। कोल्लाकसन्निवेश तिकोने स्थानों, तिराहों, चौराहों, चबूतरों से युक्त बर्तन आदि की दुकानों से सुशोभित और रमणीय नगर था। आलभिया नगरी में शृगाटक त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महापथ आदि का समायोजन था। नगर की सुरक्षा के लिए शहर कोट का निर्माण किया जाता था एवं लोगों की सुविधा तथा मनोरंजन के लिए जलाशय, उत्तमभवन, क्रीड़ा-वाटिका, उद्यान, कुएँ, तालाब, बावड़ी, जल के छोटे-छोटे बाँध बने हुए थे।
१. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, १/१, २/९२ २. वही, १/३ ३. वही, ३/१२४, ४/१५०, ९/२६९, १०/२७३ ४. वही, ५/१५७ ५. वही, ६/१६५, ७/१८० ६. उवासगदसाओ- मुनि मधुकर, ८/२३१ ७. जैन, जगदीशचन्द्र-जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० १२८-१३० ८. उवासगदसाओ-मुनि मधुकर, १/७ ९. वही, ५/१५९ १०. वही, १/७
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