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उपासकदशांगे : एक परिशीलन
दाता के सात गुण - रत्नकरण्ड श्रावकाचार में श्रावक के सात गुणों संकेत प्राप्त होता है जिसमें श्रद्धा, संतोष, भक्ति, विज्ञान, अलुब्धता, क्षमा एवं सत्य गुणों का नामोल्लेख है ।' पुरुषार्थसिद्धयुपाय में फल की अपेक्षा न करना, क्षमा धारण करना, निष्कपटभाव रखना, ईर्ष्या नहीं करना, विषाद नहीं करना, प्रमोदभाव रखना, अहंकार नहीं करना, ये सब दाता के गुण हैं । उपासकाध्ययन में रत्नकरण्ड श्रावकाचार में सत्य की जगह शक्ति करके शेष वही नाम दिये हैं । चारित्रसार, उपासकाध्ययन में संतोषकी जगह ज्ञान नाम देकर बाकी पूर्वोक्त नाम ही गिनाये हैं | वसुनन्दिश्रावकाचार में भी उपासकाध्ययन का ही आधार रखा है ।" सागारधर्मामृत में भक्ति, श्रद्धा, सत्व, तुष्टि, ज्ञान, क्षमा, अलौल्य ये दाता के सात गुण कहे हैं ।
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अतिथिसंविभाग के पाँच अधिकार - तत्त्वार्थसूत्र में दान-विधि, द्रव्य, दाता एवं पात्र की विशेषताओं से युक्त चार भेद बताये हैं ।" उपासकाध्ययन में भी यही चार भेद हैं । परन्तु वसुनन्दिश्रावकाचार में पात्रों के भेद, दातार, दान-विधान, दातव्य तथा दान का फल ये पाँच अधिकार माने हैं । इन चार या पाँच भेदों के भी अनेक उपभेद हैं, जिनका वर्णन क्रम से निम्न प्रकार से किया जा सकता है :
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१. पात्रों के भेद - जिसमें मोक्ष के कारणभूत सम्यग्दर्शनादि गुणों का संयोग हो वह पात्र कहलाता है। इसके तीन भेद हैं यथा - अविरत
१. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ११३ व विवेचन
२. पुरुषार्थसिद्धय पाय, १६९
३. " श्रद्धा तुष्टिभक्तिविज्ञानमलुब्धता क्षमा, शक्तिः"
४. चारित्रसार (श्रावकाचार संग्रह ), पृ० २४९ ५. वसुनन्दिश्रावकाचार, २२४
६. सागारधर्मामृत ५ / ४७
७. “ विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तद्विशेषः "
८. वसुनन्दिश्रावकाचार, २२०
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— उपासकाध्ययन, सूत्र, ७७८
-तत्त्वार्थसूत्र, ७/३९
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