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________________ १४८ उपासक दशांग : एक परिशीलन श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में भी अशालीनतापूर्वक असत्य, अनर्थक बकवास को मौखर्य माना है ।' ४. संयुक्ताधिकरण - श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में जो मनुष्य नारक आदि गतियों में अधिकृत किया जाता है वह अधिकरण कहलाता है । एक वस्तु को दूसरे के साथ जोड़ना संयुक्ताधिकरण है, जैसे-धनुष के साथ बाण - -- "अधिक्रियते नर-नारकादिष्वनेनेत्यधिकरणम्" योगशास्त्रस्वोपज्ञविवरणिका में जिसके द्वारा जीव दुर्गंति में अधिकृत किया जाता है, उसे अधिकरण तथा संयुक्त हल से फाल, धनुष से संयुक्त बाण आदि को संयुक्ताधिकरण कहा है। इस प्रकार एक अधिकरण को दूसरे अधिकरण से संयुक्त करने को संयुक्ताधिकरण बताया है । " ५. उपभोगपरिभोगातिरेक — सर्वार्थसिद्धि तथा तत्त्वार्थवार्तिक में जितनी उपभोग वस्तुओं के प्रयोजन से सिद्ध होती है उतने का नाम उपभोगपरिभोग अर्थ है एवं उससे अधिक उपभोग परिभोग के संग्रह को अतिरेक कहा है | चारित्रसार, लाटीसंहिता एवं श्रावकप्रज्ञप्तिटीका आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह आनर्थक्य माना गया है । " १. क. चारित्रसार, २४५ ख. लाटी संहिता, ५ / १४३ ग श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २९१ २. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २९१ योगशास्त्र स्वोपज्ञ विवरणिका, ३ / ११५ ३. ४. क." यावताऽर्थेनोपभोग - परिभोगौ सोऽर्थस्ततोऽन्य स्याधिक्यमानर्थक्यम्" - सर्वार्थसिद्धि, ७/३२. ख. तत्त्वार्थवार्तिक, ७/३२/६ ५. क. चारित्रसार, २४५ ख. लाटीसंहिता, ५/१४४-१४५ ग. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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