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________________ श्रावकाचार १३३ १७. शाक विधि - इसमें खाने की हरी सब्जियों की मर्यादा है ।" १८. माधुर विधि - माधुर यानि गुड़, शक्कर आदि की मर्यादा निश्चित की गई है। १९. जेमन विधि - इसमें व्यञ्जन विधि अर्थात् व्यञ्जनों की मर्यादा निश्चित की है । २०. पानीय विधि - इसमें पीने के पानी की मर्यादा की है । ४ २१. ताम्बूल विधि - इसमें मुख शुद्धि के लिए पान आदि की मर्यादा की है | श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र में छब्बीस बोलों के द्वारा उपभोग - परिभोग की मर्यादा निश्चित की गई है । जिसमें उपरोक्त इक्कीस पदार्थों को तो माना ही है, साथ ही वाहन विधि, उवाहण विधि, सयण विधि, सचित्त विधि, द्रव्य विधि की भी मर्यादा का विधान है, जिनके केवल नाम ही गिनाये हैं । रत्नकरण्डक श्रावकाचार आदि ग्रन्थों में परिग्रहपरिमाणव्रत में दी हुई मर्यादा के भीतर राग और आसक्ति को कृश करने के लिए प्रयोजनभूत इन्द्रियों के विषयों की संख्या को सीमित करने को भोगोपभोगपरिमाणव्रत कहा है । ७ कार्तिकेयानुप्रेक्षा में, जो अपने चित्त एवं शक्ति के अनुसार भोग एवं उपभोग वस्तु का परिमाण निश्चित करता है, १. उवासगदसाओ, १/३८ २. वही, १ / ३९ ३. वही, १/४० ४. वही, १/४१ १ / ४२ ५. वही, ६. .... मुखवासविहि, वाहणविहि, उवाहणविहि, सयणविहि, सचित्तविहि, Goa | - श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, अणुव्रत, ७ ७. क. अक्षार्थानां परिसंख्यानं भोगोपभोगपरिमाणम् । अर्थवतामप्यवधौ रागरतीनां नूतये ॥ ख. पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, १६५ -१६६ Jain Education International -रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ४/८२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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