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श्रावकाचार
कहा है।' वैसे नाम से ही इसमें परिवर्तन है, इसके स्वरूप में अन्तर नहीं है। दिगम्बर ग्रन्थों में एक बार भोगे जाने वाले को भोग एवं बार-बार काम आने वाले पदार्थों को उपभोग कहा है।
उपासकदशांगसूत्र में उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रत में इक्कीस वस्तुओं की मर्यादा निश्चित की है, जिनके त्याग से इसका परिपालन हो सके । इन इक्कीस वस्तुओं का विवरण क्रमशः इस प्रकार है :
१. उदद्रवणिका विधि-इसमें स्नान के बाद शरीर पोंछने में काम
आने वाले तौलिए की मर्यादा की जाती है । २. दन्तधावन विधि-इसमें दाँतों को साफ करने के प्रसङ्ग से एक
दो दातुन के सिवाय सबका प्रत्याख्यान ( त्याग ) किया गया है । ३. फल विधि-इसमें फलों में एक-दो को छोड़कर बाको फलों का
त्याग किया गया है। ४. अभ्यङ्गन विधि-इसमें मालिश करने के तेलों की मर्यादा निश्चित
की है। उद्वर्तन विधि-इसमें शरीर पर लगाई जाने वाली उबटन की
मर्यादा निश्चित की गई है। ६. स्नान विधि-इसमें स्नान के लिए पानी की मर्यादा निश्चित की
गई है।
१. क. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ८३
ख. अमितगतिश्रावकाचार, ६/९३ ग. योगशास्त्र, ३/५ २. उवासगदसाओ, १/२२ ३. उवासगदसाओ, १/२३ ४. वही, १/२४ ५. वही, १/२५ ६. वही, १/२६ ७, वही, १/२७
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