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८२ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन यह पार्श्व के पूर्ववर्ती तीर्थंकर तथा कृष्ण के समकालीन माने गए हैं । इनके पिता का नाम समुद्रविजय और माता का नाम शिवा देवी कहा जाता है। इनका जन्म स्थान शौरीपुर माना गया है। इनकी ऊंचाई १० धनुष और वर्ण सांवला था।२ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके नौ पूर्वभवों का उल्लेख हुआ है–धनकुमार, अपराजित आदि। इनके एक भाई रथनेमि थे जिनका विशेष उल्लेख उत्तराध्ययन के २२वें अध्याय में उपलब्ध होता है। राजीमती के साथ इनका विवाह निश्चित हो गया था किन्तु विवाह के समय जाते हुए इन्होंने मार्ग में अनेक पशु-पक्षियों को एक बाड़े में बन्द देखा तो इन्होंने अपने सारथि से जानकारी प्राप्त की, कि यह सब पशु-पक्षो किसलिए बाड़े में बन्द कर दिए गए हैं। सारथि ने बताया कि यह आपके विवाहोत्सव के भोज में मारे जाने के लिए इस बाड़े में बन्द किए गए हैं। अरिष्टनेमि को यह जानकर बहुत धक्का लगा कि मेरे विवाह के निमित्त इतने पशु-पक्षियों का वध होगा, अतः वे बारात से बिना विवाह किए ही वापस लौट आए तथा विरक्त होकर कुछ समय के पश्चात् संन्यास ले लिया। इनको संन्यास ग्रहण करने के ५४ दिन पश्चात् केवलज्ञान प्राप्त हुआ। राजीमती, जिससे उनका विवाह-सम्बन्ध तय हो गया था, ने भी उनका अनुसरण करते हुए संन्यास ग्रहण कर लिया।
अरिष्टनेमि के १८ हजार भिक्षु और ४० हजार भिक्षुणियाँ थीं। इनको निर्वाणलाभ उर्जयन्त शिखर पर हआ था।" अरिष्टनेमि महाभारत के काल में हुए थे। महाभारत का काल ई० पू० १००० के लगभग कहा जाता है। महाभारत के काल के सम्बन्ध में मतभेद हो सकता है किन्तु यह सत्य है कि कृष्ण महाभारत काल में हए थे और अरिष्टनेमि या नेमिनाथ उनके चचेरे भाई थे। डॉ० फहरर (Fuhrer) ने जैनों के २२ वें तीर्थकर नेमिनाथ को ऐतिहासिक व्यक्ति माना है। अन्य विद्वानों ने भी नेमिनाम को ऐतिहासिक पुरुष माना है। प्रो० प्राणनाथ विद्यालंकार ने
१. उत्तराध्ययन अ० २२, समवायांग १५७, आ० नि० ३८६ । २. समवायांग, गा० १०, आ० नि०, गा० ३८०, ३७७ । ३. (अ) उत्तराध्ययन अध्याय २२, (ब) उत्तराध्ययन नियुक्ति, पृ० ४९६,
(स) दशवकालिकचूर्णि, पृ० ८७ । ४. आवश्यकनियुक्ति, २५८।। ५. तिलोयपण्णत्ति, ४।११८५-१२०८। ६. एपिग्राफिका इण्डिका, जिल्द १ पृ० ३८९ ।
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