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________________ ८० : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन मोहित होकर साकेत के राजा प्रतिबुद्ध, चम्पा के राजा चन्द्रछाग, कुणाल के राजा रुक्मि, वाराणसी के राजा शंख, हस्तिनापुर के राजा अदीनशत्रु और कम्पिलपुर के राजा जितशत्रु इनसे विवाह करना चाहते थे, किन्तु इन्होंने अपने युक्ति बल से छहों को समझाकर वैराग्य के मार्ग पर लगा दिला। इन सभी ने महिल के साथ दीक्षा ग्रहण कर ली। महिल ने जिस दिन संन्यास ग्रहण किया उसी दिन उन्हें केवल ज्ञान उत्पन्न हो गया। मल्लि के ४० हजार श्रमण, ५० हजार श्रमणियाँ और १ लाख ८४ हजार गृहस्थ उपासक तथा ३ लाख ६५ हजार गृहस्थ उपासिकायं थीं। जैन परम्परा के अनुसार इन्होंने सम्मेतशिखर पर निर्वाण प्राप्त किया।२ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों-महाबल राजा और अहमिन्द्र देव का उल्लेख हुआ है। २०. मुनिसुव्रत जैन परम्परा में बीसवें तीर्थंकर मुनि सुव्रत माने गए हैं । इनके पिता का नाम सुमित्र एवं माता का नाम पद्मावती और जन्मस्थान राजगृह माना गया है। इनके शरीर की ऊँचाई २० धनुष और वर्ण गहरा नीला माना गया है। इन्होंने जीवन की संध्यावेला में चम्पक वृक्ष के नीचे कठोर तपस्या कर केवलज्ञान प्राप्त किया और अपनी ३० हजार वर्ष की आयु पूर्ण कर निर्वाण को प्राप्त किया। इनके संघ में ३० हजार मुनियों एवं ५० हजार साध्वियों के होने का उल्लेख है।' त्रिषष्टि गलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों-सुरश्रेष्ठ राजा और अहमिन्द्र देव का उल्लेख है । ___ इनके विषय में अन्य परम्पराओं में कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं है। १. आवश्यकनियुक्ति, २५८ । २. वही, २७२-३०५, ३०७ । ३. समवायांग, गा० १५७, स्थानांग ४११, वि० आ० भा० १७५९ । ४. वहो, १५७, आ० नि० ३८३ । ५. वही, २०, आवश्यकनियुक्ति २७७, ३७९ । ६. वही, १५७ । ७. वही, ३०५, ३२५ । ८. वही, २५९, २७८, समवायांग, गा० ५० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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