SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन तीर्थकर हैं, क्योंकि इनके पक्ष एवं विपक्ष में विद्वानों ने अपने तर्क दिये हैं । ताण्डय ब्राह्मण और शतपथ ब्राह्मण में नाभि पुत्र ऋषभ और ऋषभ के पुत्र भरत का उल्लेख है।' उत्तरकालीन हिन्दू परम्परा के ग्रन्थों श्रीमद्भागवत, मार्कण्डेयपुराण, कूर्मपुराण, अग्निपुराण, वायुपुराण, गरुड़पुराण, विष्णुपुराण और स्कन्धपुराण में भी ऋषभदेव के उल्लेख मिलते हैं। श्रीमद्भागवत और परवर्ती पुराणों में से अधिकांश में ऋषभदेव का वर्णन उपलब्ध है, जो जैन परम्परा से बहुत साम्य रखता है। ऋग्वेद के १० वें मंडल के सूत्र १३६/२ में वातरशना शब्द का प्रयोग हुआ है,३ व्युत्पत्ति की दृष्टि से वातरशन शब्द के दो अर्थ हो सकते हैं-(१) वात + अशन अर्थात् वायु ही जिनका भोजन है, उन्हें वातरशन कहा जा सकता है (२) वात + रशन है, रशन वेष्ठन का परिचायक वायु ही जिनका वस्त्र है अर्थात् इस दृष्टि से यह नग्न मुनि का परिचायक हो सकता है। तैत्तिरीय आरण्यक के अनुसार वातरशना का अर्थ नग्न होता है। जैनाचार्य जिनसेन ने वातरशना का अर्थ दिगम्बर किया है और उसे ऋषभदेव का विशेषण बताया है । सायण ने वातरशना का अर्थ वातरशन का पुत्र किया है, किन्तु उसका अर्थ वातरशन के अनुयायी करना अधिक उचित है क्योंकि श्रीमद्भागवत में भी यह कहा गया है कि ऋषभदेव ने वातरशना श्रमणों के धर्म का उपदेश दिया । जैन पुराण और श्रीमद्भागवत में वातरशना को जो ऋषभदेव के साथ १. (अ) "ऋषभो वा पशुनामधिपति"। --ताण्ड्य ब्राह्मण--१४।२।५ । (ब) ऋषभो वा पशूनां प्रजापतिः" --शतपथ ब्राह्मण-५।२।५।१० । २. अष्टमे मेरुदेव्यां तु नाभेर्जातं उरुक्रमः ।। दर्शयन् वर्त्म धीराणां सर्वाश्रमनमस्कृतम् ।। -भागवत १।३।१३ नाभेरसावृषभ आस सुदेविसूनुर्यो वै चचार समदग् जडयोगचर्याम् । यत् पारमहंस्यमृषयः पदमामनन्ति स्वस्थः प्रशान्तकरणः परिमुक्तसङ्गः॥ -भागवत २।७।१० देखें-मार्कण्डेयपुराण अध्याय ५० ३९-४२; कूर्मपुराण अध्याय ४१, ३७३८, अग्निपुराण, १०, १०-११, वायुपुराण ३३।५०-५२ गरुडपुराण १, ब्रह्माण्डपुराण १४, ६१ विष्णुपुराण २।१।२७, स्कन्धपुराण कुमारखण्ड, ३७५७ । ३. मुनयो वातरशनाः पिशङ्गा वसते मला । वातस्यानु ध्राजि यन्ति यद्देवासो अविक्षत ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy