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________________ तीर्थंकर की अवधारणा : ६१ शिक्षा दी थी, उन्होंने अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपिज्ञान तथा सुन्दरी को गणित विषय में पारंगत बनाया था। जैन मान्यता के अनुसार असि ( सैन्यक), मसि (वाणिज्य) और कृषि को व्यवस्थित रूप देने का श्रेय भी ऋषभदेव को है । इस प्रकार इन्हें भारतीय सभ्यता और संस्कृति का आदि पुरुष माना जाता है । यह भी मान्यता है कि इन्होंने सामाजिक जीवन में सर्वप्रथम योगलिक परम्परा को समाप्त कर विवाह की परम्परा स्थापित की थी । परम्परागत मान्यता के अनुसार इनके शरीर की ऊँचाई ५०० धनुष और आयु ८४ लाख पूर्व वर्ष मानी गई है । ये ८३ लाख पूर्व वर्ष सांसारिक अवस्था में रहे और इन्होंने १/२ लाख पूर्व वर्ष तक संयम का पालन किया। अपने जीवन की संध्यावेला में इन्होंने चार हजार लोगों के साथ संन्यास लिया । इन्हें एक वर्ष के कठोर तप साधना के पश्चात् पुरिमताल उद्यान में बोधि प्राप्त हुई थी। जैनों की ऐसी मान्यता है कि ऋषभदेव के साथ संन्यास धर्म को अंगीकार करने वाले अधिकांश व्यक्ति उनके समान कठोर आचरण का पालन न कर पाये और परिणामस्वरूप अपनी-अपनी सुविधाओं के अनुसार विभिन्न श्रमण परम्पराओं को जन्म दिया । उनके पौत्र मारोचि द्वारा त्रिदंडी संन्यासियों की परम्परा प्रारम्भ हुई। जैनों की मान्यता है कि ऋषभदेव के संघ में ८४ गणों में विभक्त ८४ गणधरों के अधीन ८४ हजार श्रमण थे, ब्राह्मी प्रमुख तीन लाख आर्यिकायें थी । तीन लाख पचास हजार श्रावक और पांच लाख चौवन हजार श्राविकाएँ थीं । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में ऋषभदेव के १२ पूर्व भवों का उल्लेख है । इसके साथ ही साथ उसमें उनके जन्म महोत्सव, नामकरण, रूप-यौवन, विवाह, गृहस्थजीवन, सन्तानोत्पत्ति, राज्याभिषेक, कलाओं की शिक्षा, वेराग्य, गृहत्याग और दीक्षा, साधनाकाल के उपसर्ग, इक्षुरस से पारण, केवलज्ञान, समवसरण, संघ स्थापना और उपदेश आदि का विस्तार से वर्णन है । ऋषभदेव का उल्लेख अन्य परम्पराओं में भी मिलता है । वैदिक परम्परा में वेदों से लेकर पुराणों तक इनके नाम का उल्लेख पाया जाता है। ऋग्वेद में अनेक रूपों में इनकी स्तुति की गई है । यद्यपि आज यह कहना कठिन है कि ऋग्वेद में वर्णित ऋषभदेव वही हैं जो जैनों के प्रथम १. " एवा बभ्रो वृषभ चेकितान यथा देव न हृणीषे न हंसि ।" - ऋग्वेद २।३३।१५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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