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________________ - तीर्थंकर की अवधारणा : ५९ निष्पुलाक, १६-निर्मम, १७-चित्रगुप्त, १८-समाधिगुप्त, १९-संवर, २०-अनिवृत्ति, २१-विजय, २२-विमल, २३-देवोपपात और २४-अनन्त विजय। उपरोक्त तीर्थंकर आगामी उत्सर्पिणी काल में भरत क्षेत्र में धर्म तीर्थ की देशना करेंगे। जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी काल में चौबीस तीर्थकर होंगे' १-सुमंगल, २-सिद्धार्थ, ३-निर्वाण, ४-महायश, ५-धर्मध्वज, ६-श्रीचन्द्र, ७-पूष्पकेतु, ८-महाचन्द्र केवली, ९-सुतसागर अहन, १०सिद्धार्थ, ११-चूर्णघोष, १२-महाघोष केवली, १३-सत्यसेन अर्हन्, १४सूरसेन अर्हन्, १५-महासेन केवली, १६-सर्वानन्द, १७-देवपुत्र अर्हन्, १८-सुपार्श्व, १९-सुव्रत अर्हन्, २०-सुकोशल अर्हन्, २१-अनन्तविजय अर्हन, २२-विमल अर्हन्, २३-महाबल अर्हन और २४-देवानन्द अर्हन् । ___ उपरोक्त चौबीस तीर्थंकर ऐरावत क्षेत्र में आगामो उत्सर्पिणी काल में धर्मतीर्थ की देशना करने वाले होंगे। १. जंबुद्दीवे [ णं दीवे ] एरवए वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउव्वीसं तित्थकरा भविस्संति । तं जहा सुमंगले य सिद्धत्थे णिवाणे य महाजसे । धम्मज्झए य अरहा आगमिस्साण होक्खई ॥ सिरिचंदे पुप्फकेऊ महाचंदे य केवली। सुयसागरे य अरहा आगमिस्साण होक्खई ॥ सिद्धत्थे पुण्णघोसे य महाघोसे य केवली । सच्चसेणे य अरहा आगमिस्साण होक्खई ।। सूरसेणे य अरहा महासेणे य केवली । सव्वाणंदे य अरहा देवउत्ते य होक्खई ॥ सुपासे सुव्वए अरहा अरहे य सुकोसले । अरहा अणंतविजए आगमिस्साण होक्खई ॥ विमले उत्तरे अरहा अरहा य महाबले । देवाणंदे य अरहा आगमिस्साण होक्खई ॥ एए वुत्ता चउव्वीसं एरवयम्मि केवली । आगमिस्साण होक्खंति धम्मतित्थस्स देसगा॥ -समवायांग (सं० श्री मधुकरमुनि) प्रकीर्णक समवाय ६७४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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