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५८ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
दिगम्बर ग्रन्थ जयसेनप्रतिष्ठापाठ के नामों में कुछ भिन्नता है उसमें निम्न २४ तोथंकरों का उल्लेख मिलता है-१
१. निर्वाण, २. सागर, ३. महासाधु, ४. विमलप्रभ, ५. शुद्धाभदेव, ६. श्रीधर, ७. श्रीदत्त, ८. सिद्धाभदेव, ९. अमलप्रभ, १०. उद्धारदेव, ११. अग्निदेव, १२. संयम, १३. शिव, १४. पुष्पांजलि, १५. उत्साह, १६. परमेश्वर, १७. ज्ञानेश्वर, १८. विमलेश्वर, १९. यशोधर, २०. कृष्णमति, २१. ज्ञानमति, २२. शुद्धमति, २३. श्रीभद्र, २४. अनन्तवीर्य ।
श्वेताम्बरग्रन्थ प्रवचनसारोद्धार और दिगम्बरग्रन्थ जयसेनप्रतिष्ठापाठ में भरतक्षेत्र के उत्सर्पिणी काल के अतीत तीर्थंकरों-निर्वाण, सागर जिन, विमल, श्रीधर, दत्त, शिवति, शुद्धमति के नामों में समानता दिखायी देती है एवं अन्य तीर्थंकरों के नामों में दोनों ग्रन्थों में भिन्नता है।
ऐरावत क्षेत्र के अवसर्पिणी काल के अतीत तीर्थंकरों के सम्बन्ध में हमें कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है। ____ जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में होने वाले चौबीस तीर्थकर निम्न हैं
१- महापद्म, २- सूरदेव, ३-सुपाव, ४- स्वयंप्रभ, ५- सर्वानुभूति, ६- देवश्रुत. ७- उदय, ८-पेढालपुत्र, ९- प्रोष्ठिल, १०- शतकीर्ति, ११-मुनिसुव्रत, १२-सर्वभाववित्, १३-अमम, १४-निष्कषाय, १५१. जयसेनप्रतिष्ठापाठ, ४७०-४९३ २. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा भविस्संति । तं जहा--
महापउमे सूरदेवे सूपासे य सयंपभे । सण्वाणुभूई अरहा देवस्सुए य होक्खइ ॥ उदए पेढालपुत्ते य पोट्टिले सत्तकित्ति य । मुणिसुव्वए य अरहा सव्वभावविऊ जिणे ॥ अममे णिक्कसाए य निप्पुलाए य निम्ममे । चित्तउत्ते समाही य आगमिस्सेण होक्खइ ।। संवरे अणियट्टी य विजए विमले ति य । देवोववाए अरहा अणंतविजए इ य। एए वुत्ता चउन्वीसं भरहे वासम्मि केवली । आगमिस्सेणं होक्खंति धम्मतित्थस्स देसगा ॥ -समवायांग (सं० श्री मधुकर मुनि) प्रकीर्णक समवाय ६६७ ।
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